कविता

कविता : अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस

बच्चे सुंदर हैं प्यारे हैं जैसे फूल

पर, सोते हैं गलीगली में ओढ़के धूल

सहते हैं धूपसर्दी पर नहीं छोडते माँगना भीख

बदले में कभी मिटाना पड़ता है पापियों की भूख 

बच्चे निराले हैं और हैं अनमोल

पर नन्हें अंग उनके बेचते हैं जैसे खिलौनेखेल

बच्चे ‘भू’ के धन हैं और हैं कल की पहचान 

पर हर जहाँ बिक जाती है उनकी मेहनत

फ़िर …….

आता है ‘बालदिवस’ उन्हें मनाने, साल में एक बार

पर उसी ही दिन में खाते हैं धोखे, बारबार

फूल से भी अच्छे, ‘गीता’ से भी सच्चे,

दुनिया के मासूम बच्चे…….

One thought on “कविता : अंतर्राष्ट्रीय बाल दिवस

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. बच्चे मन के सच्चे !

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