कविता

तुम क्या जानो ….

तुम क्या जानो …….

कुछ भी लिखना
कहाँ है आसान
कलम तो चाहती है
हर वक्त मचलना
शब्दों में भी तो
तड़प होनी चाहिए
बँधने की एक सूत्र में
अहसासों को भी
कुछ तो चाहत हो
बरस जाने की
जज्बात भी तो
चाहें वजूद अपना
किसी कोरे कागज पर
उतारना , तभी तो
कलम का चलना
होगा सार्थक और
बन पड़ेगा कुछ
रोचक सा जिसे
ये दिल चाहता हो
बयान करना तुमसे
और तुम कह देते हो
इसको वाहियात
समय की बर्बादी
तुम क्या जानो
ये तो अब शामिल है
मेरे उन अजीजों में
जो मुझे हरवक्त देते हैं
अहसास मेरे जिंदा होने का
तुम क्या जानो ये सब !!

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

One thought on “तुम क्या जानो ….

  • विजय कुमार सिंघल

    सुन्दर भावनाएं.

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