कविता

आँखों की भाषा ….

आँखों की भाषा ….
तुमने कभी
पढ़ा ही नहीं
मेरे अनकहे शब्दों में
छिपा प्रेम
पता नहीं कसूर
मेरी आँखों का था
या तुम ही नहीं जान पाए कभी
मेरी आँखों की भाषा ….

हरकीरत ‘हीर ‘

One thought on “आँखों की भाषा ….

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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