मुक्तक
1
बेफिक्र तो तटस्थ रहता है
संज्ञाशून्य निर्जीव होता है
जीवन जो भी रूप दिखाए
मुस्कुराना खेल होता है
2
ताश का पत्ता जोकर
भाग्य बदले दे ठोकर
मैं खुद बनना चाहूँ वैसा
रोऊँ अपनों को खोकर
विभा
1
बेफिक्र तो तटस्थ रहता है
संज्ञाशून्य निर्जीव होता है
जीवन जो भी रूप दिखाए
मुस्कुराना खेल होता है
2
ताश का पत्ता जोकर
भाग्य बदले दे ठोकर
मैं खुद बनना चाहूँ वैसा
रोऊँ अपनों को खोकर
विभा
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ठीक है मुक्तक. और अच्छे लिखे जा सकते हैं.
मुक्तकों में मजा नहीं आया.
मुक्तक अच्छे हैं, लेकिन इनमें हाइकु का प्रभाव स्पष्ट पता चलता है.