मेरे हाइकु
ढलती वय
बना देती अशांत
अस्थिर मन
आशा आलोक
सदा रहे ह्रदय
निराशा लोप
काँपते हाथ
दुआओ का सागर
बुजुर्ग जन
ज्ञान का स्त्रोत
पुस्तके अनमोल
प्रकाश स्तम्भ
ढलती वय
बना देती अशांत
अस्थिर मन
आशा आलोक
सदा रहे ह्रदय
निराशा लोप
काँपते हाथ
दुआओ का सागर
बुजुर्ग जन
ज्ञान का स्त्रोत
पुस्तके अनमोल
प्रकाश स्तम्भ
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शान्ति बहन , ब्रिध्वस्था पर सही लिखा है , इसी स्थिति में से गुज़र रहा हूँ और शक्ती अलोप हो गई है और बेबस हूँ . जीता हूँ तो सिर्फ अपनी विल पावर से . और होना भी ऐसा ही चाहिए , optimist रहना चाहिए . जीना इसी का नाम है .
वृद्धावस्था पर अच्छे हाइकु, बहिन जी.
प्रेरक टिप्पणी के लिए आभार विजय कुमार भाई