कविता

मेरे हाइकु

ढलती वय
बना देती अशांत
अस्थिर मन

आशा आलोक
सदा रहे ह्रदय
निराशा लोप

काँपते हाथ
दुआओ का सागर
बुजुर्ग जन

ज्ञान का स्त्रोत
पुस्तके अनमोल
प्रकाश स्तम्भ

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

3 thoughts on “मेरे हाइकु

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन , ब्रिध्वस्था पर सही लिखा है , इसी स्थिति में से गुज़र रहा हूँ और शक्ती अलोप हो गई है और बेबस हूँ . जीता हूँ तो सिर्फ अपनी विल पावर से . और होना भी ऐसा ही चाहिए , optimist रहना चाहिए . जीना इसी का नाम है .

  • विजय कुमार सिंघल

    वृद्धावस्था पर अच्छे हाइकु, बहिन जी.

    • शान्ति पुरोहित

      प्रेरक टिप्पणी के लिए आभार विजय कुमार भाई

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