कविता

मित्रता-अतुकान्त मुक्तछंद

मित्रता

……………

सूरज को देखो जरा

वह दोस्ती निभाता है

जाने से पहले चाँद को

रौशनी दे जाता है

सागर चाँद से मिलने

पूनम को जाता हे

 

कौन कहता धरती से

अम्बर कभी मिलता नहीं

दर्द बाँटने वह क्षितिज पर

तत्परता  से आता है

मेघों मे भाव है

दोस्ती का चाव है

वसुन्धरा के कदमों में

आकर बिखर जाता है

 

भँवरे भी बाग से

दोस्ती निभाते हैं

गुनगुन संगीत वे

फूलों को सुनाते हैं

चिड़ियों ने भोर से

दोस्ती निभाई है

चाँदनी निशा से मिलने

तैयार होकर आई है

 

दोस्ती बस दोस्ती है

यहाँ कोई एहसान नहीं

बाँट लो दर्द और खुशी

संबल बन खड़े हो जाओ

कृष्ण सुदामा के जैसा

रहे न मन मलाल कोई !!

*ऋता*

मित्रता दिवस की शुभकामनाएँ

2 thoughts on “मित्रता-अतुकान्त मुक्तछंद

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    मधु बहन , बहुत ही सुन्दर शब्द लिखे दोस्ती पर . सही बात है दोस्ती किसी पर एहसान नहीं . दोस्ती का अपना ही एक मज़ा है .

  • विजय कुमार सिंघल

    मित्रता पर बहुत सुन्दर कवितायेँ.

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