“दोस्ती “
“दोस्ती “
न कोई शर्त होती है, न आभार होता है
दोस्ती मे केवल प्यार ही प्यार होता है
न खत होते है न कोई जवाब होता है
मरते दम तक बस इंतज़ार होता है
न तस्वीर होती है ,न कभी सामना होता है
ख्याल ही विसाल का आधार होता है
सपनो मे जब दो सायों का मिलन होता है
चाँद के हाथो चाँदनी का शृंगार होता है
मेले मे या किसी मोड़ पर टकराती है निगाहें
दोनो के बीच अजनबीयों सा व्यवहार होता है
यादों की गलियों में बीत जाती है जिंदगी
बीज मे छुपे अंकुरों सा अभिसार होता है
मौन के साथ रहकर आजीवन गुज़ार देते है
तन्हाई का खामोशी से भरा संसार होता है
सीने मे दर्द दिल बेकरार सा होता है
मासूम इरादो मे इबादत शुमार होता है
किशोर कुमार खोरेंद्र
बहुत सुन्दर ग़ज़ल .
इबादत शुमार होता है….मेरे ख्याल से इवादत ..के लिए ‘होती है’ आना चाहिए …स्त्री लिंग….
सुन्दर ग़ज़ल …हुश्ने मतला का जबाव नहीं …
अच्छी कविता. मित्रता का रिश्ता बहुत महत्वपूर्ण होता है, अगर उसको निष्ठा से निभाया जाये.
achchi kavita