लय
तुम्हारे ह्रदय
और मेरे ह्रदय
की धड़कनों की
एक सी हो जाए लय
मैं तुम में हो जाऊं
और तुम मुझमे
हो जाओ विलय
व्यतीत हो जाए कई जन्म ,कई युग
और निमिष सा ठहरा रह जाय
सदियों का समय
नर्म स्पर्शों की
मधुर अनुभूति के हरे पर्णों से
आच्छादित रहे
हमारा यह प्रणय
बिन बोले ही
आँखों से पढ़ ले
एक दूजे का मौन आग्रह
सदा आलोकित रहे स्निग्ध चांदनी
मन के स्वच्छ आकाश में
ऐसे चन्द्रमा का हो उदय
देह आभास तिरोहित हो जाए
शेष रहे ,बिना संशय
रूह से रूह का
प्रगाढ़ परिचय
शाश्वत रहे यह अनुराग
प्रेम के प्रति हो
हम दोनों में दृढ निश्चय
जैसे अडिग है हिमालय
चाहे आ जाए प्रलय
किशोर
बहुत अच्छी कविता है , अगर ऐसा संभव हो जाए तो बात ही किया है .
shukriya gurmel ji
बहुत अच्छी कविता.
shukriya vijay ji