रिश्तों का मौसम
हर मोड़ पर, हमने,जिंदगी का,
नया रंग देखा!
पल-पल बदलता हुआ,
रिश्तों का मौसम देखा !
कल तक जो भी था अपना,
उसको भी बदलते देखा !
आसाँन नहीं हैं,
ये सफ़र, जिंदगी का !
ज़ख्मों को भी हमने,
हँसकर सीना सीखा !
जिसे दिल में दी थी पनाह ,
दिल तोड़ने का सबब भी ,
उससे ही सीखा!
ये अलग बात है,कि न समझे ,
वो आज हमें !
कल तक जिंदगी का हर सबक,
जिसने हमसे सीखा!
गिर पडे आँखों से टूटकर आँसू,
बेबसी में जब दिल को ,
तडपता देखा !
किसी के रहमों-करम के “आशा”
नहीं हैं,हम कायल!
अफ़सोस फ़रिशतों को भी,
खतायें करते हुये देखा !
हम जलाकर चरागे-दिल,
दुआयें करने लगे !
जब अँधेरों को हमने
उनकी तरफ़,बढ़ते हुये देखा !
हर मोड़ पर हमनें,जिंदगी का,
नया रंग देखा!
पल-पल बदलता हुआ,
रिश्तों का मौसम देखा !
…राधा श्रोत्रिय”आशा”
२३-११-२०१४
पल-पल बदलता हुआ,
रिश्तों का मौसम देखा !…बिलकुल सही फ़रमाया है आपने!
बहुत अच्छी कविता !