कविता

रिश्तों का मौसम

हर मोड़ पर, हमने,जिंदगी का,
नया रंग देखा!
पल-पल बदलता हुआ,
रिश्तों का मौसम देखा !
कल तक जो भी था अपना,
उसको भी बदलते देखा !
आसाँन नहीं हैं,
ये सफ़र, जिंदगी का !
ज़ख्मों को भी हमने,
हँसकर सीना सीखा !
जिसे दिल में दी थी पनाह ,
दिल तोड़ने का सबब भी ,
उससे ही सीखा!
ये अलग बात है,कि न समझे ,
वो आज हमें !
कल तक जिंदगी का हर सबक,
जिसने हमसे सीखा!
गिर पडे आँखों से टूटकर आँसू,
बेबसी में जब दिल को ,
तडपता देखा !
किसी के रहमों-करम के “आशा”
नहीं हैं,हम कायल!
अफ़सोस फ़रिशतों को भी,
खतायें करते हुये देखा !
हम जलाकर चरागे-दिल,
दुआयें करने लगे !
जब अँधेरों को हमने
उनकी तरफ़,बढ़ते हुये देखा !
हर मोड़ पर हमनें,जिंदगी का,
नया रंग देखा!
पल-पल बदलता हुआ,
रिश्तों का मौसम देखा !

…राधा श्रोत्रिय”आशा”
२३-११-२०१४

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

2 thoughts on “रिश्तों का मौसम

  • जवाहर लाल सिंह

    पल-पल बदलता हुआ,
    रिश्तों का मौसम देखा !…बिलकुल सही फ़रमाया है आपने!

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता !

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