कविता

गजल- ***रोशन है***

भीतर-बाहर रोशन है.
वो आया घर रोशन है.
उसको देख लगे जैसे-
चाँद जमीं पर रोशन है.
उसने कैसे पत्र लिखा,
अक्षर-अक्षर रोशन है.
रात अमावस वाली है,
गाँव-गली-घर रोशन है.
प्यार का दीपक ताजमहल,
पत्थर-पत्थर रोशन है.
जब अपना दिल रोशन हो,
तो दुनिया भर रोशन है.
डाॅ.कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674

One thought on “गजल- ***रोशन है***

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह ! वाह !! बहुत खूब, डॉ साहब !!!

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