कविता

दहेज …..

गरीब बाप
सोचता दिन-रात
बिन दहेज
सर्वगुण सम्पन्न
बेटी बनी है बोझ ….१

लगी है बोली
पढ़े-लिखे दूल्हे की
सोने-चाँदी से
झुक जाता पलड़ा
बिक जाता है दूल्हा ….. २

कोख में कत्ल
कौन है जिम्मेदार
सभ्य समाज
डस ले फन फैला
दहेज रुपी सांप ……….३

प्रवीन मलिक

प्रवीन मलिक

मैं कोई व्यवसायिक लेखिका नहीं हूँ .. बस लिखना अच्छा लगता है ! इसीलिए जो भी दिल में विचार आता है बस लिख लेती हूँ .....

One thought on “दहेज …..

  • विजय कुमार सिंघल

    दहेज़ पर अच्छे ताँके !

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