कभी सोचा न था
मुझे तुम इस तरह से समझे
जैसे हो तुम
कोई मेरे अपने
बस ख़्वाब में तुम्हें
देखता आया था
लिये हुए
अनेक आकार धुंधले
कभी सोचा न था
इस तरह स्वयं चलकर
मिल जाओगी आकर मुझसे
मरुथल सी इस दुनिया में
बन मृदु और मीठे जल के
असंख्य झरने
अब छोड़ कर चल न देना
मुझ तन्हा पथिक के संग रहना
ताकि साकार हो जाए
मेरे जीते जी सारे सपने
ओ..मेरे अपने
किशोर कुमार खोरेंद्र
उत्तम !
dhnyvad mahoday
एक्सेलेंट.