कविता

विस्तृत वन

 

विस्तृत वन
मे
पथ के
बहके हुए है कदम
चुपचाप बह रहे है
निर्जन के क्षण

झर रहे है
मौन -के शब्द
पीले भूरे
वृक्षों के पत्तो के संग

बह रहा समीर मंद
स्थिर लग रहे दृश्य
ठिठकी हुई सी हैं
परछाईयाँ सब

बाहों मे धुप के
छाया की नर्म देह भी
आलिंगन के आंच से
हो गयी है गरम

स्रोत का मोह त्याग
पहाड़ से उतरकर
प्रेम मे डूबी
सागर की तरफ़ जा रही
नदिया कह रही
मुझसे—-
आओ पास मेरे
छंद सृजन के लिए
यही है शुभ अवसर

मुझमे डूबकर
उतार लो
मढ़े मुखौटे की तरह
सारे आडम्बर

मेरा जल …
स्वच्छ
मीठा
पवित्र
और दर्पण सा
हैं …निरमल

kishor kumar khorendra

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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