तेरे रुख़ से……
तेरे रुख़ से वो हँसी गायब है
जहाँ के प्रति यकीं गायब है
तुमने जिस पे ऐतबार किया
वो निगहबाँ अभी गायब है
जो तेरी तन्हाई का साथी है
चाँद की वो चाँदनी गायब है
मकसद समझ नही आया
पतवार है कश्ती गायब है
दर्द सहना आता है पर
आँखों से मस्ती गायब है
किशोर
निगहबाँ=रखवाला
बहुत अच्छी ग़ज़ल.
thank u vijay ji