मुझे जंगल के…..
मुझे जंगल के दुर्गम रास्तों की आवारगी पसंद है
मर मिटने को आतुर परवाने की दीवानगी पसंद है
वियोग में तेरे मैं तो दूर बहुत दूर निकल आया हूँ
मुझे महा सागर के साहिल की वीरानगी पसंद है
वो तो सदा लहरों सी आकर चुपचाप चली जाती है
राहनुमा की मुझे यह निश्छल अदायगी पसंद है
नदी प्यासी सागर प्यासा ,लहर प्यासी तट प्यासा
जिस्म ए रूह की यह सोहबत ए तिश्नगी पसंद है
तेरे लिए दुआ माँगूँ , सजदा करूँ , तेरी इबादत करूँ
तुझसे बिना रूबरू मिले रगबत की जिंदगी पसंद है
किशोर कुमार खोरेंद्र
अच्छी ग़ज़ल !