उपन्यास : देवल देवी (कड़ी ४)
2. पाटन का रुष्ट ब्राह्मण दिल्ली की गलियों में
दिल्ली की राजसी सड़कों पर एक ब्राह्मण धीरे-धीरे चल रहा था। यह मार्ग अलाउद्दीन के शाही दरबार की तरफ जाता था। उसके नंगे पाँव धूल-धूसरित थे।उसके कंधे पर कोशैय पड़ा था, जिसके बीच से जनेऊ दिखाई दे रहा था। जनेऊ का रंग मटमैला हो चुका था।
यह ब्राह्मण कभी आन्हिलवाड़ (पाटन) की राजसभा में मंत्री पद को सुशोभित करता था। और वहाँ के राजा कर्णदेव के द्वारा अपने भाई केशव की हत्या एवं अपनी तथा अपने छोटे भाई की पत्नी का राजा से शील रक्षा के लिए आत्मदाह करने के कारण क्षुब्ध था।
जब दरबान ने सुल्तान से प्रार्थना की कि एक गुजरात से आया ब्राह्मण उसके दर्शन का अभिलाषी है तो सुल्तान ने उसे बुलवा भेजा।
दरबार का रंग-ढंग देखकर वह ब्राह्मण एक बार सहम गया। एक ऊँचे तख्त पर सुल्तान बैठा था और उसके सामने दोनों तरफ उसके सरदार विराजमान थे, जिनके शरीर हाथी के समान थे। दर्पण से चमकते फर्श पर नृत्यांगना नृत्य कर रही थी। ब्राह्मण भी उस नृत्य को देखता रहा। नृत्य पूरा होने पर नर्तकी सुल्तान को सिजदा करके चली गई।
सुल्तान ने एक नजर ब्राह्मण पर डाली। सुल्तान की आँखों की ताब न सहकर वह ब्राह्मण सर झुकाकर बोला ”बात ही बात में देवगिरी को जीतने वाले, अहमद चप का सर कलम करने वाले हे राजाओं के राजा अलाउद्दीन, यह पाटन का ब्राह्मण माधव तुम्हें आशीर्वाद देता है।“
ब्राह्मण की बात पर अट्टाहस करके हँसते हुए बोला, ”अरे बिरहमन, अपनी दशा तो देख एक बार, फिर सोच क्या तू मुझे आशीर्वाद दे सकता है।“
ब्राह्मण ने एक आँख भर सुल्तान की तरफ देखा, फिर बोला, ”हे सुल्तान! ये ब्राह्मण आपको पाटन का आशीर्वाद देता है। हे सुल्तान, हे देवगिरी का मान मर्दन करने वाले पाटन से स्वर्ण लाने में कितने ऊटों की आवश्यकता पड़ेगी इसकी गणना अभी शेष है। क्या सुल्तान उस स्वर्ण को दिल्ली लाने का प्रबंध न करेंगे।“
”सोना, अरे बिरहमन ये तो तेरे हिंदुस्तान में हर तरफ बिखरा है। उसे बटोरने के लिए पाटन ही क्यों।“
”क्या सुल्तान अपने रनिवास की शोभा न बढ़ाना चाहेंगे।“
”हरम, मेरे हरम की शोभा तो देवगिरी की शहजादी चंद्रिमा बढ़ा रही है। ये जो तूने रक्कासा देखी ये देवगिरी के सामंत की बेटी है। जिसके दरबार में ऐसी रक्कासा है जिसके हरम में देवगिरी की शहजादी हो। अरे ब्राह्मण तू उसके हरम की शोभा कम करके कैसे मानता है।“
”अपराध क्षमा करें सुल्तान, मेरा आशय आपके रनिवास की सुंदरता को कम करके आंकने की नहीं था। निसंदेह जिसकी बेगम देवगिरी की राजकुमारी हो उसका रनिवास से तो इंद्र भी ईर्ष्या कर ले। पर मेरा अभिप्राय तो बस इसकी शोभा की अभिवृद्धि से था।“
”सो कैसे ब्राह्मण।“ अलाउद्दीन ने तनिक उतावलापन दिखाते हुए पूछा।
”महारानी कमलावती, पाटन की पटरानी। क्षमा करें सुल्तान उनके बिना आपका रनिवास अधूरा है।“
”कमलावती, जरा बता तो कैसी है तेरी महारानी।“ अलाउद्दीन तख्त पर पहलू बदलते हुए बोला।
ब्राह्मण ने कहा ”उस चंद्रबदनी, मृगलोचनी रानी के चमकते ललाट पर भू-भाग ऐसा दिखता है, मानो यमुना की धारा में भुजंग तैर रहे हैं। उसकी कीर की तरह नासिका, अनार के दानों की तरह दंत-पंक्ति, पतली-सी कमर और नारियल के समान पुष्ट और ठोस स्तन है। ऐसी है वह रानी कमलावती। हे सुल्तान! वह संर्वाग सुंदरी कमलावती एक पुत्राी की माता बनने के उपरांत भी किसी षोडशी के समान है। जैसे उसके शरीर से शैशव का हृास और यौवन का विकास एक साथ हो रहा हो। सो है सुल्तान मैं उसकी सुंदरता का कहाँ तक वर्णन करूँ। जब आप उस राजरानी को एक दृष्टि भर देख लेंगे तो पाएँगे मैंने जो बताया वो उसकी सुंदरता का शतांश भी नहीं है।“
”हूँ“ सुल्तान एक आह भरके कहता है कुछ और सुनाओ ब्राह्मण उसके बारे में, जिसके बारे में सुनने भर से बदन में हरारत बढ़ गई है।
“हे राजाओ के राजा! उसका अंग-अंग श्रीखंड और कुंकुम के तरह सलोना है। उसकी पिंडलिया स्वर्ण-कर्ण की तरह झिलमिलाती है, और जंघाएँ तो केले की तने तथा हाथी के सूंढ को मात देती है। उसकी उंगलियों का आगे का भाग कनेर की नवजात कली-सा लगता है। उसके नितंबो का उभार और कसाव उसके वस्त्र छिपाने में असमर्थ रहते हैं। उसकी मुट्ठी भर की कमर है। कमल की तरह नयन है। और सीने पर नारियल की तरह युगल यौवन।“
”बस, बस बिरहमन बहुत हुआ। हम उस पर अपनी नजरे इनायत जरूर करेंगे। और इस खबर के लिए तुम अपनी उम्मीद से ज्यादा पाओगे।“
ब्राह्मण घुटने पर बैठकर बोलता है, ”सुल्तान की जय हो!“ और सुल्तान के होठों पर एक कामुक मुस्कान तैर जाती है।
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देशद्रोहियों ने देश को सदैव हानि पहुंचाई है. अगर देशद्रोही न होते तो न तो देश कभी गुलाम होता और न स्वतंत्रता के लिए इतनी लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ती. आज भी देशद्रोही कम नहीं हैं.
जी सही कहा आपने सर , आज तो देशद्रोही गली गली में है।
यही तो भारत का दुर्भाग्य है . कभी अम्भी ने सिकंदर को पोरस के खिलाफ उसे आकारमन करने को बुलाया तो कभी जैचंद ने पृथ्वी राज के खिलाफ एहमद शाह अब्दाली को बुलाया . अंग्रेजों को महान्राजे और नवाबों ने पूरा साथ दिया .
चित्तोड़ पे अलाउद्दीन को हमले के लिए भी विश्वास घाती ने आमंत्रित किया था और रणथम्भोर में भी रणमल राणा हम्मीर से विश्वास घात करके अलाउद्दीन से मिल गया था। हाय रे दुर्भाग्य !