मजदूर और मोबाइल
मजदूर
मजदूर अनपढ़ है,
मजबूर है,
इसीलिए तो तर्क वितर्क उससे दूर है,
वह विश्लेषण और व्याख्या का काहिल नहीं है,
पर इतना भी जाहिल नहीं है,
कभी सट्टा कभी जुआ कभी लाटरी ,
कैसे भी हो ,
पैसे की फसल काटना चाहता है,
और इसी चक्कर में अपनी कमाई भी
गंवाता है,
कुछ नेता उसे इन्साफ दिलाने की आड़ में
अपना उल्लू सीधा करते है,
उनके पल्ले कुछ नहीं डालते,
बस अपनी जेब ही भरते हैं,
और अब एक नयी बीमारी—मोबाइल
मजदूर के घर में गम ही गम है,
आज घर में आटा नहीं है,
आज घर में चावल नहीं है,
आज घर में दूध नहीं है,
आज घर में तेल नहीं है ,
स्कूल की फीस नहीं दी,
बेटे की कापी नहीं आई,
तन ढकने को कपडा कम है,
घर में गम ही गम है,
भूख से बिलखता बच्चा पूछता है,—
माँ,बापू कब आएगा
माँ रो के कहती है,
मोबाइल रीचार्ज कराने गया है,
बस जल्दी ही आ जायेगा .
—Jai Prakash Bhatia
आपके प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद, यह कविता मई दिवस लिखी थी,
बहुत अच्छी कविता लगी , नए ज़माने की नई मुसीबतें .
आपने एक कटु सत्य को कविता में व्यक्त किया है।