लिए अपनी सांसों में
लिए अपनी सांसों में मोंगरे सी महक आ जाया करो
तुम यूँ ही कभी कभार इधर अचानक आ जाया करो
न जाने कितने अरमान जगने लगे है मन के भीतर मेरे
तुम लिए सतरंगी चूड़ियों की मधुर खनक आ जाया करो
खिलने लगे है पलाश दूर दूर तक अब तो जंगल में
तुम लिए मौसम ए बहार सी रौनक आ जाया करो
न कोई सुर न कोई ताल अब अच्छा लगता है मुझे
तुम लिए अपने पायल की मीठी झनक आ जाय करो
तुम्हारे ध्यान में मैं रहता आ रहा हूँ सतत निमग्न
लगा कर मेरे दुनियाँ में होने की भनक आ जाय करो
पृथ्वी ,जल अग्नि वायु आकाश सब बेजान से लग रहे हैं
फागुनी बयार सी जगाने उनमे उमंग बेशक आ जाय करो
किशोर कुमार खोरेन्द्र
वाह वाह बहुत ख़ूब !
thankx a lot vijay ji
बहुत खूब जी .
prashansa ke liye aabhaar