गजल : अंधेरों से अब दोस्ती हो गई
कितनी तन्हा आज जिंदगी हो गई ,
अंधेरों से अब दोस्ती हो गई,
उजालों में जीकर भी देख लिया हमने,
फिर क्यूँ हर शम्मा बेवफा हो गई l
मंझधार से तो ले आया था अपनी कश्ती को,
फिर क्यूँ साहिल से दूरियां हो गई,
ख्याबों की दुनिया में रहा करता था पहले,
मगर सच्चाइयों से आज पहचान हो गई l
अनदेखे अहसासों को,
मैं मान बैठा था जिंदगी,
शायद इसीलिए भी जिंदगी खफा हो गई,
चंद रिश्ते जहाँ बनाये थे कभी,
कितनी वीरान आज वो गली हो गई,
चिरागे उम्मीद ने जला दिया घर हमारा,
और किसी की ईद और दिवाली हो गई l
कतरों में जीकर भी ,
मैं मरता रहा हर रोज,
ईक सजा इस तरह से जिंदगी हो गई,
बहारों के मौसम जहाँ देखे थे हमने,
कितनी बंजर आज वो जमीन हो गई l
जिन राहों पर चला था मैं जानिबे – मंजिल,
कितनी फरेबी वो राहें हो गई ,
सचमुच तन्हा आज जिंदगी हो गई,
अंधेरों से अब दोस्ती हो गई l
– मनोज चौहान
बढ़िया ग़ज़ल !
धन्यबाद सर
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी.
धन्यवाद जी….आपकी हौसला अफजाई के लिए l