” संध्या “
संध्या सुन्दरी,
जब आती है ।
आवाज़ देते हुए,
चुप-चुप-चुप ,
साय-साय-साय,
पृथ्वी वासियों को,
हर जीव जन्तुओ को।
प्रियतम की तरह,
खयालात से।
दिन भर के कार्य से,
थके हुए उन सभी,
लोगों को।
अपने नर्म शय्या पर,
बिठाकर।
अपने कोमल हाथों से,
सहलाकर ।
सुखानुभूति का स्पर्श,
देकर ।
उनकी थकान को ,
मिटाकर ।
एक सुंदर सा,
निद्रा रूपी सुख,
देकर।
उन्हें सुलाती है।
आराम देने के बाद,
सूबह होने के पहले ही,
चम्पत हो जाती है।
संध्या सुन्दरी जब,
आती है।
बढ़िया !
आभार श्रीमान जी।
रमेश जी , बहुत खूब ! सही ही तो है कि संध्या ही एक सुख्दाएक अहसास है जिस के बाद हम ने निंद्रा की गोद में जा कर सपने लेने हैं .
धन्यवाद श्रीमान जी।