कविता

उम्र की संध्या

उम्र की संध्या

अपनी उम्र की संध्या पर पहुँच कर ,
जब हम याद करते हैं ,
संग संग बीते हुए कल की,
और रांम नाम की माला का
करते हुए जाप,
गायत्री मन्त्र का करते हुए उच्चारण,
याद करते हैं –
उन आनंद मयी सुखी घड़ियों की,
यह जीवन कितना मधुमय नज़र आता है,
और अब , जब कभी जब भी ,
मैं क्षितिज की ओर निहारता हूँ,
लगता है कितना मधुर ,
धरती आकाश का मिलन,
पलकें निहारती हैं जब ऐसा दिलकश नज़ारा,
आभास होता है, जैसे प्रियतम से प्रेम आलिंगन,
संग पाकर प्रियतम का,
मन पाता है कितना सुख,
तन पाता है कितना संतोष ,
शबनम सी शीतलता मिलती है–
भरता है तन में नया रंग, नया जोश,
उपहार मिलता है प्रियतम के प्यार का ,
यह मन हो जाता है कितना मदहोश ,
श्रावण की शीतल फुहार सा,
खिल उठता है मन कोमल,
मिलते हैं जीवन में जब,
ऐसे प्यार के अनमोल पल,
०४/०३/२०१५ —–जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845

2 thoughts on “उम्र की संध्या

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत ख़ूब !

  • भाटिया जी , कविता अच्छी लगी .

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