मुक्तक : भाव हमारे चित्र तुम्हारे
भाव हमारे चित्र तुम्हारे दोनों एकाकार हो गए
शब्दों की माला में गुँथ कर नीलकंठ का हार होगए
शिल्पी ने पाषाणों पर शिवशक्ति जीवन्त किये
अभिषेकित हो जल धारा से स्वप्न सभी साकार होगए
उछलती झूमती नदी कितनी इठलाती है
वक्ष पर पत्थर के शिव शिव लिख जाती है
अचरज से मानव अवाक रह जाता
जब गूँज से बम भोले की घाटी गुँजाती है
— लता यादव