मानसून: यादों का गुलदस्ता
मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता
वो गड्ढों का जमा पानी
वो बारिश तूफानी
वो छाता मजबूत मगर सस्ता
स्कूल को जाती सड़क पर छप छप कर कूदना
आसमान की तरफ देखकर कभी आँखों को मूंदना
कभी तेज हवाओं के सरसराते थपेड़ों में हाथो को खोल खड़े रहना
कभी उस छाँव देते पेड़ की ओट में हाथ फैलाए पड़े रहना
मुझे तो याद आता है यादों का गुलदस्ता
मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता
कभी साइकिल को पानी के गड्ढों में उतार देना
कभी बरसाती उतारकर भीगते हुए पानी का मजा लेना
मिटटी जमा करते जूते, मैले होते मोजों में भी बेफिक्री दिखाना
कभी मैदानों में फिसलना कोहनियों में चोट खाना
मुझे तो याद आता है यादों का गुलदस्ता
मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता
सौंधी सी मिटटी की खुशबू का साँसों में घुल जाना
उन पंछियों का बारिश के बाद हमारे छतों पर आ जाना
चहकते पंछियों को सुन मन का खिल उठता साज
बहुत याद आता है उस बारिश का वो मिज़ाज
मुझे तो याद आता है यादों का गुलदस्ता
मानसून से याद आता है वो मेरा पुराना बस्ता
____सौरभ कुमार दुबे
अतीव सुंदर सृजन सौरभ जी
बहुत खूब ! बचपन में बारिश में हम भी बहुत मस्ती करते थे.
सौरव जी , आप ने मेरी भी बचपन की यादें ताज़ा करा दीं. बचपन तो बचपन ही होता है लेकिन हमारा कुछ कुछ बेसिक ही था . कुछ भी हो बचपन की यादें बहुत मज़ा देती हैं .
सच कहा सर बचपन तो बचपन ही होता है, उस जैसा कुछ भी नहीं, आज जब अचानक बारिश हुयी तो अपने स्कूल के दिन याद आ गए और ये कविता बन गयी! काश कि बचपन फिर लौट आता….!!