लघुकथा

अनुपस्थिति

तटीय उड़ीसा के एक छोटे से मछुआरों के गाँव में आज बीस दिन बाद स्कूल खुला था जिसे सुनामी के कारण बंद कर दिया गया था । तमाम बच्चे हाथों मे स्लेट और तखती लटकाये स्कूल में चले आ रहे थे। कुछ चहक रहे थे और कुछ गुमसुम।

मास्टरनी ने आ कर अटेन्डेन्स रजिस्टर खोला और बच्चों की उपस्थिति दर्ज करने लगी। बच्चे अपना नाम पुकारे जाने पर ‘जी मैडम’ बोल रहे थे पर कई नाम हवा में तैरते रह गये। दो तीन बार पुकारे जाने पर भी उन नामों को किसी ने नहीं पहचाना । मास्टरनी ने खीज कर रजिस्टर बंद कर दिया ।

“आज इतने सारे बच्चे अनुपस्थित क्यों हैं?” उसने प्रश्न किया पर बच्चे क्या बताते । मैडम के  प्रश्न का उत्तर तो उनके  बहते हुए आँसुओं में ही मिल सकता था ।

मनोज पाण्डेय 'होश'

फैजाबाद में जन्मे । पढ़ाई आदि के लिये कानपुर तक दौड़ लगायी। एक 'ऐं वैं' की डिग्री अर्थ शास्त्र में और एक बचकानी डिग्री विधि में बमुश्किल हासिल की। पहले रक्षा मंत्रालय और फिर पंजाब नैशनल बैंक में अपने उच्चाधिकारियों को दुःखी करने के बाद 'साठा तो पाठा' की कहावत चरितार्थ करते हुए जब जरा चाकरी का सलीका आया तो निकाल बाहर कर दिये गये, अर्थात सेवा से बइज़्ज़त बरी कर दिये गये। अभिव्यक्ति के नित नये प्रयोग करना अपना शौक है जिसके चलते 'अंट-शंट' लेखन में महारत प्राप्त कर सका हूँ।

3 thoughts on “अनुपस्थिति

  • Manoj Pandey

    जैसा एहसास जगा, लिख दिया । धन्यवाद ।

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत कारुणिक लघुकथा. सुनामी की जगह भूकंप होता तो भी कोई अंतर नहीं पड़ता. सभी त्रासदी ऐसी ही होती हैं. सबकी पीड़ा समान होती है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लघु कथा में करुणा ही भरी है , बच्चे विचारे किया बोलते ,कि जो उन की आँखों के सामने हुआ था , मास्टरनी समझ ही नहीं रही थी .

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