ग़ज़ल : ज़माने की हकीकत
दुनिया में जिधर देखो हजारों रास्ते दिखते
मंजिल जिनसे मिल जाए वे रास्ते नहीं मिलते
किस को गैर कह दें हम और किसको मान लें अपना
मिलते हाथ सबसे हैं दिल से दिल नहीं मिलते
करी थी प्यार की बातें कभी हमने भी फूलों से
शिकायत सबको उनसे है कि उनके लब नहीं हिलते
ज़माने की हकीकत को समझ जाओ तो अच्छा है
ख्वावों में भी टूटे दिल सीने पर नहीं सिलते
कहने को तो ख्वावों में हम उनके साथ रहते हैं
मुश्किल अपनी ये है के हकीक़त में नहीं मिलते
— मदन मोहन सक्सेना
बहुत अच्छी ग़ज़ल !