******निशाना *****
पल पल पालती है
बंद पिंजरे में एक औरत अपनी
महत्वाकाँक्षाओं की चिड़िया को,
कभी धूप और खुले आसमान की
हवा खाने को निकालती है
उस चिड़िया को बाहर,
फुदक कर चिड़िया ज्यूँ ही
मुंडेर तक पहुचती है,
कोई घाघ शिकारी बैठा होता है
दम साध निशाना बांधे
मारने उस चिड़िया को,
जानता है वो
निशाना खाली नहीं जाएगा,
महत्वाकाँक्षाओं की चिड़िया नहीं मरी
तो औरत मरेगी !
__ प्रीति दक्ष
आपकी कविता की “पल पल पालती है बंद पिंजरे में एक औरत अपनी महत्वाकाँक्षाओं की चिड़िया को” पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं। लगता है आपने एक विवेकपूर्ण स्त्री की भावनाओं को शब्द दिए हैं। हार्दिक धन्यवाद।
behad shukriya aapka man mohan ji .. kavita pasand karne ke liye.
bahut bahut shukriya aapka man mohan ji.. ye aurat ki zindagi ki sachchaai hai..
बहुत खूब !
shukriya vijay ji.. aabhaar ..
aabhar vijay ji