सफल उड़ान
रख दिया हाथ सिर पर किसी ने
तो साया बन गया
मुसकाया देख कर मुझको
तो हँसना आ गया
रखा पाँव पर पाँव किसी के
तो चलना आ गया
पकड़ कर उंगली दिखाई चौखट
दुनिया रंगना आ गया
दिलाया हौसला इतना कि
उड़ना आ गया
जुटाये मेहनत के दाने
तो खजाना बन गया
टुकड़ा टुकड़ा बंटता रहा पिता
अब बूढ़ा हो चला है
पसीने से, लथपथ रहने वाले हाथों की
नमी सूख चली है
आँखों में रंग हीन सा मोतिया बिन्दु
चाहता है
तुम्हारी आँखों की चमकीली रोशनी
कहाँ हो तुम …..?
अपेक्षाएँ होती थी पूरी कभी जिसके द्वारा
आज उपेक्षित चादर में लिपट चुका है
आँखों के किनारे पर उमड़ आया करते थे
जो आँसू तुम्हारी यादों में
वो आँसू नमक बनकर स्थाई हो चले है
माना, कि दिखाया था आकाश पिता ने
तुमको उड़ने के खातिर
लेकिन तुमने तो उस जमीन को ही भुला दिया
जिस पर टिका था
तुम्हारी सफल उड़ान का वजूद ।
कल्पना मिश्रा बाजपेई
बहुत खूब !