ओ मोहब्बत की बूंदो मेरे आंगन भी गिरना….
बरसा दो थोडा प्यार भी
बूंदो केसाथ
सूख सी गयी मानवता को
बहार दे दो।
अब की बार, ओ सावन
रिश्तों के आंगन को
वफा कि फुहार दे दो॥
मुरझा सी गयी है
मोहब्बत की फुलवारी पर
कुछ ईनायत कर दो।
तुम सींचते हो
सारी धरा को
मेरा दामन भी प्यार से भर दो॥
तुम तो प्यार के समुंदर हो
बरसते हो हर बार
प्यास बुझाने को।
एक मेरा मन तरसा है
बूंद बूंद पाने को
ओ जीवन सार
इस बार मेरे आंगन भी उतरना
ओ मोहब्बत की बूंदो
मेरे आंगन भी गिरना….
ओ मोहब्बत की बूंदो
मेरे आंगन भी गिरना….
सतीश बंसल