कविता

ओ मोहब्बत की बूंदो मेरे आंगन भी गिरना….

बरसा दो थोडा प्यार भी
बूंदो केसाथ
सूख सी गयी मानवता को
बहार दे दो।
अब की बार, ओ सावन
रिश्तों के आंगन को
वफा कि फुहार दे दो॥

मुरझा सी गयी है
मोहब्बत की फुलवारी पर
कुछ ईनायत कर दो।
तुम सींचते हो
सारी धरा को
मेरा दामन भी प्यार से भर दो॥

तुम तो प्यार के समुंदर हो
बरसते हो हर बार
प्यास बुझाने को।
एक मेरा मन तरसा है
बूंद बूंद पाने को
ओ जीवन सार
इस बार मेरे आंगन भी उतरना
ओ मोहब्बत की बूंदो
मेरे आंगन भी गिरना….
ओ मोहब्बत की बूंदो
मेरे आंगन भी गिरना….

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.