विजयी सैनिक
हॉस्पिटल के कैंसर वार्ड के विस्तर पर लेटे लेटे सुबीर थक चूका था l एक सप्ताह से वह हॉस्पिटल के इसी वार्ड में था l दिनभर वह इंतजार करता कि घर से कोई आये उसकी हालचाल पूछे l उससे कुछ बात करे ,परन्तु हर दिन उसे निराशा ही हाथ लगती l रात १० बजे एक बेटा आता था और सो जाता था l दिन में यदि उसे कुछ चाहिए होता तो वह नर्स से ही कहता l एक गिलास पानी के लिए भी उसे नर्स पर निर्भर रहना पड़ता था l इसके विपरीत दूसरे मरीज के घरवाले दिनभर वहीँ मौजूद रहते l मरीज़ से बातचीत करते ,उनकी आवश्यकता का ध्यान रखते ,मरीज़ को ढाढ़स दिलाते ,आत्मविश्वास जगाते l जीने जी इच्छा और रोग से लड़ने की प्रेरणा देते l यह सब देखकर उसे लगता कि दूनिया में शायद किसी को उसकी ज़रूरत नहीं है इसीलिए कोई अब उसका खोजखबर लेने नहीं आते ,पत्नी भी नहींl एक सप्ताह होगया, न पत्नी आयी न कोई उसका फोन l बेटों ने भी फ़ोन करके हालचाल नहीं पूछा l उसका मन निराशा से भर गया l
पंद्रह वर्ष से अधिक समय हो गया था सेना से सेवानिवृत हुए l सेना से सेवानिवृत होकर उसे रोजगार की तलाश करनी पड़ी थी क्योंकि जो पेंसन मिलता था उससे बच्चों की पढाई और परिवार का खर्चा पूरा नहीं होता था l उन्होंने एक प्राइवेट कम्पनी में नौकरी कर ली l हर माँ बाप की तरह वह भी चाहता था उसके बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त करे और अच्छी नौकरी करे l गाँव में रहकर खुद अपनी पढाई पूरी नहीं कर पाए थे l इसीलिए बडे बेटा सुनील को ग्रेजुएशन के लिए उन्होंने शहर में हॉस्टल में भेज दिया l छोटा बेटा सुधीर स्कूल परीक्षा पास करने तक गाँव के स्कूल में पढता रहा l कुछ कर्ज लेकर सुनील को एम् बी ए कराया तो पुणे में उसकी नौकरी लग गई l सुधीर ने जब स्कूल परीक्षा पास किया तो उसे भी ग्रेजुएसन के लिए भाई के पास पुणे भेज दिया l परिवार की गाड़ी सही पटरी पर चल रही थी l हँसी ख़ुशी से जीवनं बीत रहा था तभी सुबीर के जिंदगी में एक उल्कापात हुआ l एक रात उसके सीने में असहनीय दर्द शुरू हो गया l घर में पत्नी सुरेखा के अलावा और कोई नहीं था l दोनों बेटे पुणे में थे l डरी हुई सुरेखा ने पडोशी के दरवाजे पर दस्तक दिया l पडोशी राजन और उसकी पत्नी रीता तुरंत आ गयेl स्थिति भांप कर राजन ने अपने पहचानवाले डॉक्टर को फोन से बुला लिया l डक्टर ने प्राथमिक जाँच कर कुछ गोलिया दी और कहा कि इन्हें तुरंत हॉस्पिटल में भर्ती करना पड़ेगा l डॉक्टर ने ही एम्बुलेंस बुला लिया और एक निजी हॉस्पिटल में भर्ती करा दिया l वहां उसकी पूरी जाँच की गई l जाँच के बाद डॉक्टरों ने कहा कि उनका बाई पास सर्जरी करना पड़ेगा l यह सुनते ही सुरेखा रोने लगी किन्तु सुबीर धीरज नहीं खोयाl उसने डॉक्टरों से कहा ,” डॉक्टर साहब ,बाई-पास का खर्चा बहुत होगा ,मैं इसका खर्चा बहन नहीं कर पाउँगा l आप लोगों से बिनती है कि दवाई के द्वारा मुझे इतना स्वस्थ कर दीजिये कि मैं पुणे तक जा सकूँ l मैं एक सेवानिवृत सनिक हूँ l मेरा इलाज सैनिक हॉस्पिटल में मुफ्त हो सकता है l”
“वह तो कोलकाता में भी हो सकता है “ एक डॉक्टर ने कहा l
“हाँ ,यहां भी हो सकता है ,परन्तु यहां मेरा देखभाल करने के लिए कोई नहीं होगा l पुणे में मेरे दो बेटे हैl वे मेरा ख्याल रख सकते हैं ,इसीलिए मैं पुणे जाना चाहता हूँ l “ सुबीर ने कारण बताया l
डॉक्टरों ने उसे दश दिन बाद पुणे जाने की अनुमति दे दी l खबर पाते ही दोनों बेटे भी पुणे से आ गए थे l वे अपने साथ माँ बाप को पुणे ले गए l पुणे मिलिट्री हॉस्पिटल में सुबीर को दाखिल कर लिया गया l कई दिन तक अलग अलग परीक्षण होता रहा l पूरी जाँच के बाद उसका बाई-पास सर्जरी किया गया l मिलिट्री हॉस्पिटल में अनुशासन का कड़ाई से पालन किया जाता है l वहाँ मरिज से मिलनेवालों का समय निश्चित होता है l परिवार के लोग एवं दूसरे लोग उसी समय मरीज़ से मील सकते हैं l सुरेखा और दोनों बेटे उसी निर्धारित समय पर आते ,बातचीत करते ,हालचाल पूछते ,दिलशा दिलाते l सुबीर को अच्छा लगता कि इस हालत में पत्नी एवं बेटे उसके साथ हैं l मिलिट्री हॉस्पिटल की सेवा और अपनों का अपनापन ने उसे जल्दी स्वस्थ होने में मददगार साबित हुआ l जल्दी स्वस्थ होकर वह कोलकाता चले गए l जीवन की गाडी फिर पटरी पर दौड़ने लगी l लेकिन नियति को कुछ और मंजूर था l डो साल के बाद अस्त्राचार (ओपेरेसन ) के स्थान पर एक फुंसी हो गया l उसमें दर्द होने लगा तो सुबीर तुरंत मिलिट्री हॉस्पिटल जाकर डॉक्टरों को दिखा दिया l डॉक्टरों को कुछ संदेह हुआ तो उस स्थान से एक टुकड़ा निकालकर बायोप्सी के लिए भेज दिया l चार पांच दिन बाद रिपोर्ट आया l रिपोर्ट में कुछ मेलैंड सेल पाए जाने की बात कही गयी थी l यह कैंसर भी हो सकता था और कैंसर का सर्जन हॉस्पिटल में उपलब्ध नहीं था l इसीलिए सुबीर को शहर के एक जाने माने निजी हॉस्पिटल में भेजदिया गया l उस हॉस्पिटल में कैंसर के उपचार के लिए जरुरी सभी आधुनिक उपकरण उपलब्ध थे और निष्णात सर्जन भी थे l यहाँ भी एकबार फिर जाँच किया गया l उसके बाद डॉक्टरों ने शल्य क्रिया द्वारा गांठ को निकल दिया l उसके बाद सुबीर को किमोथेरेपी लेने की सलाह दी गई परन्तु उसने कीमोथेरपी लेने से इनकार कर दिया l अंतत: घाव सूखने बाद उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई l डॉक्टर चाहते थे कि शल्यक्रिया के बाद यदि कोई मेलैंड सेल रह जाता है तो उसे किमोतेरापी से मार दिया जाय जिससे भविष्य में दो बार होने का कोई सम्भावना न रहे परन्तु सुबीर इस बात को समझ नहीं पाया और कीमोथेरपी नहीं लिया l डॉक्टर की सलाह न मानकर सुबीर ने जो गलती की उसका बहुत बड़ी कीमत उसे चुकाना पड़ा l कुछ ही महीनों बाद उसी स्थान पर फिर एक फोड़ा निकल आया और पहले से कहीं बड़ा l दर्द भी ज्यादा होने लगा और अधिक कष्टदायक l वह बिना समय नष्ट किये मिलिट्री हॉस्पिटल में जाकर रिपोर्ट किया l डॉक्टरों ने उसके पुराने रिपोर्ट्स और नए रिपोर्ट्स का अध्ययन कर इस नतीजे पर पहुंचे कि हो सकता है कि यह पुराने रोग की पुनर्जागृति है l इसीलिए उसको उसी निजी हॉस्पिटल जहाँ उसका ओपेरेसन हुआ था , भेज दिया l इस हॉस्पिटल में पुराने डॉक्टर के बदले नया डॉक्टर आ चुका था l नया डॉक्टर ने पहले सुबीर के पुराने रिपोर्ट्स का अध्ययन किया फिर और कुछ आवश्यक जाँच करवाई l इसमें करीब एक सप्ताह का समय लग गया था l यही वह समय है जब घर के कोई भी व्यक्ति उसे देखने नहीं आया l दिनभर वह अकेला पडा रहता था l दूसरे मरीजों के रिश्तेदारों को आते जाते देखते थे l मरीजों की पसंद की चीजें लाकर देते थे, प्यार से बात करते थे ,दिलाशा दलाते थे l चौबिश घंटे घर के कोई न कोई व्यक्ति मरीज़ के पास बैठे रहते थे l केवल उसके घर से कोई नहीं आया l यहाँ तक कि उसकी पत्नी भी नहींl कभी फोन पर भी हालचाल नहीं पूछा l अपनों की उदासीनता से सुबीर को कैंसर के घाव से ज्यादा कष्ट हुआ l वह डिप्रेसन का शिकार हो गयाll जीवन से मोह टूटने लगा l मन में आया कि “जीवन को समाप्त कर दे l किसी को यहाँ मेरी जरुरत नहीं है तो जीने से क्या फ़ायदा ?” परन्तु दूसरे ही क्षण मन में आया ,”मैं एक सैनिक हूँ ,लड़ना मेरा काम है ,चाहे वह युद्ध भूमि हो, जीवन-रण हो , कोई बीमारी या स्वार्थी लोग हों,सबसे लड़ना मेरा काम है l आत्म ह्त्या का अर्थ होगा बिना लडे हथियार दाल देना l नहीं, मैं आत्म हत्या नहीं कर सकता l मैं कैंसर से और स्वार्थी लोगों से अंतिम सांस तक लडूंगा और जीतूँगा भी l “ वह करवट बदलकर बिस्तर पर सीधा बैठ गया l अपना फोन उठाया और सबसे पहले बड़े बेटे को फोन लगाया l उधर से बेटे ने पूछा ,”बाबा कैसे हो ?”
“अभीतक जिन्दा हूँ l “ सुबीर के स्वर में तीखापन झलक रहा था l“तुम,तुम्हारा भाई, तुम्हारी माँ में से किसी ने अभी तक जानने की कोशिश नहीं की कि मैं जींदा हूँ या मर गया हूँ ? एक सप्ताह से यहाँ पड़ा हूँl कैसा हूँ ?क्या कर रहा हूँ? क्या तकलीफ है ?डॉक्टरों ने क्या कहा ? क्या कुछ भी जानने की कोशिश की तुम लोगों ने ? सब मरीज के परिवार के लोग कोई न कोई यहाँ २४ घंटे बैठे हुए हैं और मरीज का ख्याल रख रहे हैं और तुम लोग हो कि तुम्हे एक मिनिट का समय नहीं मिलता कि कम से कम फोने कर के पूछ ले कि कैसे हो l मैं यहाँ आया था यह सोचकर कि मेरे दोनों बेटे यहाँ हैं ,वे आसानी से मेरा ख्याल रख सकेंगे l तुम्हारी माँ भी जब चाहे आ सकेंगीl परन्तु मैं गलत था l अब शायद तुम लोगो को मेरी जरुरत नहीं है l अच्छा हुआ, तुमलोग अपने व्यवहार से मुझे बता दिया l अगर मैं यहाँ मर गया तो सब समस्या का समाधान हो जायेगा l अगर नहीं मरा तो तुम लोग मुझे मरा ही समझ लेना l मैं यहाँ से सीधा अपने घर चला जाऊंगा अपने गाँव lतुम्हारे यहाँ नहीं आऊंगाl” उसने फ़ोन काट दिया l बच्चे और माँ की कोई भी मज़बूरी रही होगी ,उसे पता नहीं ,परन्तु शाम तक कोई नहीं आये l रात ९.३० बजे छोटा बेटा आया परन्तु बाप बेटे में कोई बातचीत नहीं हुई, दोनो चुपचाप सो गए l छै बजे सुबह उठ गए और सात बजे बेटे ने कहा ,”बाबा मुझे कालेज जाना है ,मैं जारहा हूँ l”
“ठीक है” कहकर सुबीर ने सिर हिला दिया l
बेटा चला गया l दिन में डॉक्टर आया और सुबीर को बताया कि उसका ओपरेसन करना पड़ेगा परन्तु उसके पहले दूबारा बायोप्सी करना पडेगा l
सुबीर ने कहा ,”डॉ साहब ,आप जो उचित समझे वही करे ,मैं तैयार हूँ l”
शाम तक डॉक्टर ने घाव के स्थान से एक टुकड़ा निकलकर बायोप्सी के लिए भेज दिया और पांच दिन के बाद आने लिए निर्देश देकर उसे हॉस्पिटल से छुट्टी दे दी गई l शाम को डिस्चार्ज होने के पहले दोनों बेटे और सुबीर की पत्नी आ गई थी l हॉस्पिटल का वातारण था इसीलिए सुबीर चुप रहा ,कुछ बोला नहीं परन्तु उसके मन के भाव उसके चहरे पर स्पष्ट झलक रहा था l चारो घर चले गए l पांचवें दिन जब सुबीर हॉस्पिटल आया तो उसकी पत्नी और दोनों बेटे साथ थे l डॉक्टर ने बायोप्सी का रिपोर्ट देखा और कहा कि शल्य क्रिया तो करना ही पड़ेगा, उसके बाद कीमोथेरेपी से भी इलाज करना पड़ेगा l सुबीर मानसिक रूप से तैयार था इसीलिए कहा ,डॉ साहब मैं हर प्रकार के इलाज के लिए प्रस्तुत हूँ l आप जो उचित साझे ,वही करे l डॉ ने अपने असिस्टंट को उसे भर्ती करने और अपेरेसन की तैयारी करने के लिए आवश्यक निर्देश दिए l असिस्टंट डॉ ने सभी कागजात तैयार कर सुबीर के दस्तखत लेकर उसे उसी समय भर्ती कर लिया l दूसरे दिन ११ बजे अपेरेसन का समय दिया गया l दोनों लड़के शाम को घर चले गए परन्तु सुरेखा पति के साथ हॉस्पिटल में ही रही l दुसरे दिन ११ बजे के पहले ही दोनों लड़के आ गए l सुबीर आज खुश था पत्नी और दोनों बेटे आज साथ थे l ओपेरेसन के बाद जब उसे बाहर लाया गया तब वह बेहोश था उसे आई सी वार्ड में रखा गया l जब उसे होश आया तब उसे जनरल वार्ड में शिफ्ट किया गया l वहाँ मरीज के साथ एक व्यक्ति को रहने की अनुमति दी गईl अब सुरेख पति साथ दिन रात रहती और पति के हर आवश्यकता का ध्यान रखती l नर्स समय पर दवा खिलाकर चली जाती l सातवें दिन सुबीर को डिस्चार्ज कर दिया गया और तीन किमो का दिन भी निश्चित कर दिया गया l अबकी बार सुबीर नियमित रूप से निर्धारित दिन में आकर किमो ले लेता l हर किमो के समय उसकी पत्नी उसके साथ हॉस्पिटल में ही रहती और उसका देह्भाल करती l बेटे सुबह शाम आकर मिलकर जाते l इसप्रकार तीनो किमो के समाप्ति के बाद डॉ ने कई प्रकार की जाँच करवाईl अंतत: सभी सेल स्वस्थ पाए गए l डॉ ने उसे कैंसर से मुक्ति दिला दी l एक सैनिक विजयी हुआ l कैंसर को तो उसने हराया ही ,परिवार के लोगों में सहानुभूति और अपनापन के भाव भरने में भी विजय पा ली l
कालीपद ‘प्रसाद’
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