चीखने लगा है धर्म…
चीखने लगा है धर्म, मानवता तार तार
श्रृद्धा ने ये कैसा रूप, धर लिया पाप का
गुरु कर रहे पाप, भक्तों मे संताप
नीचता भी शरमाई देख रूप आप का
भोग भोग जपने मे जिंदगी बिता दी,
और पापी,ढोंग करते रहे सदा ही जाप का
पाप का घडा है ये तो फूटना जरूर ही था
भरते ही फूट गया, ढोंगियों के पाप का॥
धर्म दुशाला ओढ़े , भेडिये विचर रहे
अपमान धर्म का, सरे बाजार हो रहा
नीचता के हाथ फंसा, बनकर कारोबार
धर्म बिलख कर ,जार जार रो रहा
हो रहे बलात्कार, त्रिया देह का व्यापार
बेटियों का शोषण भी, बार बार हो रहा
संतो की धरती पे, धर्म का चोला ओढे
रावणों के कर्मो का जय जयकार हो रहा॥
अब तो पधारो देव, रोद्र रूप धारो देव
धर्म ध्वजा का अपमान, यूं ना देखो तुम
दुष्ट हो रहे प्रचंड, आस्था है खंड खंड
धर्म को होते, अवमान यूं ना देखो तुम
बढने लगे है कंस, डूब रहे नेक वंश
सत्य का मिटते जहान, यूं ना देखो तुम
एक तुम से आस, भक्तों का विश्वास
होते भक्ति को निष्प्राण, यूं ना देखो तुम॥
सतीश बंसल
सुंदर रचना
शुक्रिया विभा जी…