नाग पंचमी
आज नाग पंचमी है,
सुबह
मैं घर से निकला
किसी एक नाग को दूध पिलाने
पर किसे पिलाऊं, इस दुनिया में,
हर और नाग ही नाग नज़र आ रहे हैं
किसी एक को पिलाऊँगा ,तो बाकि सब मुझ पर चढ़ जायेंगें
और तो और
कुछ नाग तो मेरी आस्तीन में ही लोटे हुए थे
वह भी जैसे जाग्रत हो फुंफकारने लगे
बेहद परेशान, हैरान और बेबस –मैं अब क्या करूँ
तभी एक गरीब की कुटिया के आगे एक बच्चा
भूख से बिलख रहा था
माँ रो रही थी और बाप दारू चढ़ा के सो रहा था,
मैंने वो दूध उस बच्चे को पिला दिया
और नागो की फुंफकार झेलता हुआ ,
नागो से बचता हुआ,
सहमा सहमा सा
अपने घर वापिस आ गया.
—जय प्रकाश भाटिया
धारदार लेखन
वाह वाह ! करारा व्यंग्य !!