कहानी

किसान का अधूरा स्वप्न

आज रामदीन बहुत खुश था और खुश हो भी क्यूँ न?उसके खेतों में लहलहाती गेहूं और चने की फसल उसके वर्ष भर के अथक परिश्रम की कहानी कह रही थी और बालियों पर पड़ती सूरज की किरण रामदीन को स्वर्ण के साहूकार होने का गर्व प्रदान कर रहीं थी।वो सोचने लगा अब सब दुःख-दर्द मिट जाएंगे।राजू को विद्यालय में फीस न पहुँचने के कारण बेंच पर खड़ा नहीं किया जायेगा और गांव के जमींदार के पास गिरवी रखा हुआ पत्नी का मंगलसूत्र  जब अचानक ले जा कर वो पत्नी के हाथ में रखेगा तब उसके चेहरे की खुशी देखकर उसकी थकान उड़न छू हो जायेगी। और हाँ अब कमला भी तो बड़ी हो गई हैं इसी वर्ष उसके हाथ भी  पीले कर के मैं हरिद्वार हो आऊंगा।Screenshot_2015-08-21-10-45-57

“लो अपने लिए तो कुछ सोचा ही नहीं,मैं भी अपने लिए एक  जोड़ी नया कुरता-पायजामा और जूते लेकर आऊंगा और गांव के प्रधान की तरह छाती तान कर घूमूँगा” वो मन ही मन  बड़बड़ाया।उसके जूते के छेद इतने बड़े हो गए थे की राह चलते  कंकड़ उसमें घुस कर पैरों को लहूलुहान कर जाते हैं और कुर्ते  के सैकड़ो पैबन्द गरीबी के अभिशाप के भयावह रूप को  प्रदर्शित कर रहे हैं।रामदीन ने आज ख़ुशी के कारण भोजन  भी नहीं किया वो कल रात से ही फसल की निगरानी में जग  रहा था।सोचते सोचते कब शाम हो गई पता ही नहीं चला  अचानक बादल की गडग़ड़ाहट ने उसे स्वप्न से बाहर निकाला ।

“अरे ये बादल कैसे आ गए” उसके चेहरे पर चिंता की लकीरें  उभर आईं,तभी बारिश की कुछ छोटी-छोटी बूंदों ने उसके  तन और मन को गर्म सलाखों सा दाग दिया।और देखते-देखते  बारिश ने विशाल रूप ले लिया रामदीन ने अपना मानसिक संतुलन  खो दिया वो दौड़ कर जाता कुछ गेहूं की बालियां तोड़ता अपने  कुर्ते में छिपाता और कुछ को पास पड़े पत्थर के नीचे दबा देता। उसके आँखों से निकलती आसुंओं की धार बारिश में मिल कर  जमीन में समा रही थी। वो दौड़ कर खेतों के बीचों-बीच पहुँच गया  और जोर-जोर से चिल्लाने लगा “मेरी गरीबी ख़त्म हो जायेगी, मैं ये  सारी फसल बेच कर खूब धन कमाऊँगा” तभी कोई चीज आकर उसके  सिर से टकराई ये ओले थे जिसने रही सही कसर भी पूरी कर दी।

एक के बाद एक कई ओलों की चोट ने उसे बौखला दिया उसने चेहरे  पर हाथ लगाया तो हाथ रक्त से लाल हो गया था।रामदीन ने खेत के  किनारे बनी अपनी झोपड़ी की तरफ दौड़ लगाई मगर इससे पहले  की वो झोपड़ी तक पहुँच पाता उसके कदमों ने उसका साथ छोड़  दिया वो औंधे मुँह गिर गया हाथों से बालियां छूट कर पानी की तेज  धार में बह गईं। उसकी सांसे चल रही थी मगर शरीर  साथ नहीं दे  रहा था।उसे अपना परिवार नज़र आ रहा था कमला के पीले हाथ, राजू का विद्यालय,पत्नी का मंगलसूत्र और तभी एक तेज सांस के  साथ उसकी हृदय गति रुक गई। उसके प्राण पखेरू उड़ गए थे। ओलों की चोट से कुर्ते के पैबन्द भी फट गए थे जिससे उसका  नंगा बदन साफ दिख रहा था।

— वैभव”विशेष”

 

         

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।