मंगल मूरत गणपति देवा/गज़ल/
देवों में जो प्रथम पूज्य है, शीघ्र सँवारे सबके काम।
मंगल मूरत गणपति देवा, है वो पावन प्यारा नाम।
भक्ति भरा हर मन हो जाता, भादों शुक्ल चतुर्थी पर,
सुंदर सौम्य सजी प्रतिमा से, हर घर बन जाता है धाम।
भोग लगाकर पूजा होती, व्रत उपवास किए जाते,
गणपति जी की गाई जाती, आरति मन से सुबहो शाम।
चल पड़ती जब सजकर झाँकी, ढोल मँजीरे साथ लिए,
झूम उठता यौवन मस्ती में, सड़कों पर लग जाता जाम।
फिर फिर से हर साल विराजें, देव यही अभिलाषा है,
विनती हो स्वीकार हमारी, करते बारम्बार प्रणाम।
-कल्पना रामानी