कविता

आसरा

कौन रोक सका है ?
या रोक सकता है
तूफ़ान या भूचाल को!
ये तो सदियों से आये
आते रहेंगे मनुजों ….
ऐसे में —
जो कमज़ोर हैं
उनका उखड़ जाना
स्वाभाविक है
किन्तु / फिर भी /
कम से कम —
अपनी जगह
स्थिर रहने का प्रयास
हमें अवश्य करना है!
अन्यथा —
किसी टूटे हुई दर्पण की भांति
हो जायेंगे हम खण्ड-खण्ड
अवशेष भी न बचेंगे हमारे
इतिहास बन जायेंगे —
यूनान, मिश्र, रोम की तरह …

बहरहाल —
इन बुरे दिनों में भी
अनेक स्वार्थों के बीच
तेरी ही पुरातन परम्पराओं का
आसरा है ऐ भारत माँ …

महावीर उत्तरांचली

लघुकथाकार जन्म : २४ जुलाई १९७१, नई दिल्ली प्रकाशित कृतियाँ : (1.) आग का दरिया (ग़ज़ल संग्रह, २००९) अमृत प्रकाशन से। (2.) तीन पीढ़ियां : तीन कथाकार (कथा संग्रह में प्रेमचंद, मोहन राकेश और महावीर उत्तरांचली की ४ — ४ कहानियां; संपादक : सुरंजन, २००७) मगध प्रकाशन से। (3.) आग यह बदलाव की (ग़ज़ल संग्रह, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। (4.) मन में नाचे मोर है (जनक छंद, २०१३) उत्तरांचली साहित्य संस्थान से। बी-४/७९, पर्यटन विहार, वसुंधरा एन्क्लेव, दिल्ली - ११००९६ चलभाष : ९८१८१५०५१६

2 thoughts on “आसरा

  • शशि शर्मा 'ख़ुशी'

    सुंदर सृजन

  • सतीश बंसल

    खूबसूरत रचना महावीर जी, बधाई…

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