इतिहास

अतुलनीय मुकेश – न भूतो न भविष्यति

          पुण्य-तिथि २५-२६ अगस्त पर विशेष

अमर गायक मुकेश उन सौभाग्यशाली कुछ गायकों में एक हैं, जिन्हें फिल्म-जगत में सफलता प्राप्त करने के लिए कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा। शहद मिश्रित स्वर के बेताज बादशाह मुकेश को जब संगीतकार अनिल विश्वास ने पहली बार सुना, तो आश्चर्य से उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई नवागन्तुक, कुंदन लाल सहगल के गाने इतनी सहजता से और स्वर में उसी माधुर्य के साथ गा सकता है! वह ज़माना के.एल.सहगल का था जिनके सामने पंकज मल्लिक और सी.एच.आत्मा जैसे नैसर्गिक प्रतिभा के धनी गायक भी पानी भरते थे। अनिल विश्वास ने मुकेश पर अप्रतिम विश्वास जताते हुए अपने संगीत निर्देशन में बन रही फिल्म ‘पहली नज़र’ में गाने का अवसर दिया। मुकेश ने अपनी सारी प्रतिभा उड़ेल दी उस गाने में। कौन भूल सकता है स्वर-सम्राट मुकेश का वह पहला गीत – “दिल जलता है तो जलने दे, आँसू ने बहा फ़रियाद न कर……!” गाना सुपरहिट हुआ। एक बार सहगल जी ने इस गाने को सुना, तो वे भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सके। अपने सेक्रेटरी से उन्होंने पूछा – “यह गाना मैंने कब गाया?” सेक्रेटरी का उत्तर था -“यह गाना आपने नहीं, नवागन्तुक गायक मुकेश ने गाया है।” सहगल ने मुकेश से मिलने की इच्छा जताई। जैसे ही मुकेश को यह समाचार मिला, वे अपने आदर्श कुंदन लाल सहगल से मिलने उनके आवास पर पहुँच गए। सहगल ने उन्हें बार-बार सुना और स्नेह से मुकेश के कंधे पर हाथ रखकर कहा – “अब मैं चैन से मर पाऊँगा। मुझे मेरा उत्तराधिकारी मिल गया। मेरी विरासत सुरक्षित रहेगी।” उन्होंने अपना वह हारमोनियम, जिसपर स्वयं अभ्यास करते थे, मुकेश को सौंप दिया। मुकेश जीवन भर उसी हारमोनियम पर अभ्यास करते रहे। लता मंगेशकर भी सहगल जी की अनन्य प्रशंसिका हैं। वे मुकेश को भी उतना ही पसंद करती हैं। उनका कहना है कि मुकेश जी की आवाज में मुझे के.एल.सहगल की प्रतिछाया दिखाई पड़ती है। जब मुकेश अपने कैरियर के उठान पर थे, सहगल जी का देहावसान हो गया। मुकेश ने सहगल की कमी खलने नहीं दी। वे सभी संगीतकारों के पसंदीदा गायक थे। फिल्म जगत के वे ऐसे एकमात्र गायक/गायिका थे, जिनके गाए लगभग सभी गाने जनता कि जुबान अविलंब पर चढ़ जाते थे।

समय किसी को भी नहीं बक्शता है। मुकेश को भी ५० के दशक में काफी दिक्कतें आईं। १९४७ में देश के बंटवारे के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के बीच पनपी असुरक्षा की भावना ने फिल्म जगत में भी अपना असर दिखाना शुरु कर दिया। नौशाद, शकील बदायूंनी, दिलीप कुमार (युसुफ़ खान), महबूब इत्यादि नामी-गिरामी हस्तियों ने अपना एक कैंप स्थापित कर दिया जिसे दिलीप कैंप कहा जाने लगा। उस समय फिल्म-जगत में इन लोगों का बोलबाला था। दिलीप कुमार ट्रेजेडी किंग थे और मुकेश थे दर्द भरे गीतों के शहंशाह। मुकेश ने दिलीप कुमार के लिए जितने भी गाने गाए, वे सुपर हिट ही नहीं हुए बल्कि मील के पत्थर साबित हुए। दिलीप कुमार पर मुकेश की आवज़ बहुत फबती थी। फिल्म अन्दाज़ के गाने – तू कहे अगर जीवन भर तुझे गीत सुनाता जाऊँ……., झूम-झूम के नाचो…, मेला का – गाए जा गीत मिलन के….,धरती को आकाश पुकारे….., मेरा दिल तोड़ने वाले…..,यहूदी का – ये मेरा दीवानापन है….., मधुमती का – सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसी…….., दिल तड़प-तड़प के दे रहा है ये सदा…. इत्यादि को कौन भूल सकता सकता है जो मुकेश की आवाज़ में दिलीप पर फिल्माए गए थे। दिलीप कैंप के उदय के बाद दिलीप कुमार ने मो. रफ़ी का पार्श्वगायन लेना आरंभ कर दिया, लेकिन दिलीप के लिए रफ़ी द्वारा गाए गीत मुकेश द्वारा गाए गीतों की ऊँचाई नहीं प्राप्त कर सके। कारण स्पष्ट था – दिलीप की ट्रेजेडी एक्टिंग में मुकेश का दर्द भरा सहज स्वर एक अद्भुत प्रभाव का सृजन करता था। कैंपबाजी का सर्वाधिक नुकसान हिन्दी फिल्मी संगीत को हुआ। गायिकाओं में भी इस कैंप ने लता के विकल्प के रूप में शमशाद बेगम को प्रोत्साहित किया; लेकिन लता का विकल्प कोई बन सकता है क्या? लता और मुकेश का विकल्प न कभी था और न आगे होगा भी। मुकेश गुमनामी के अंधेरे में गुम होने के कगार पर आ गए थे। भला हो महान कला पारखी राज कपूर का जिसने मुकेश की प्रतिभा को सही ढंग से पहचाना और ‘आग’ से जो सफ़र इन दोनों ने साथ-साथ शुरु किया वह ‘मेरा नाम जोकर’ तक निर्बाध गति से चलता रहा। मुकेश राज कपूर की आवाज़ बन गए। फिल्म आवारा में राज पर फिल्माया गया, शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देश्न में मुकेश की आवाज़ में कालजयी गीत ‘आवारा हूँ, आसमान का तारा हूँ, की लोकप्रियता ने देश में ही नहीं विदेश में भी लोकप्रियता के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। तात्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू जब राजकीय यात्रा पर रूस गए, तो सारे प्रोटोकाल तोड़कर वहाँ की जनता ने “आवारा हूँ, आसमान का तारा हूँ…… समवेत स्वर में गाकर नेहरू जी का स्वागत किया था।

वैसे तो मुकेश ने सभी संगीतकारों के निर्देश्न में पार्श्वगायन किया था, लेकिन उनकी मधुर आवाज़ का सबसे सुन्दर उपयोग करने में शंकर-जयकिशन, कल्याणजी-आनन्दजी, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल, खैयाम, रोशन, उषा खन्ना, सरदार मलिक और दान सिंह का नाम सबसे ऊपर है। मुकेश हमेशा चुनिन्दा गाने ही गाते थे, इसलिए समकालीन गायकों की तुलना में उनके द्वारा गाए गीतों की संख्या बहुत कम है, लेकिन गुणवत्ता और लोकप्रियता बेमिसाल है। कहते हैं कि किशोर कुमार होंठों से गाते थे, मो. रफ़ी कंठ और होंठ – दोनों से गाते थे; लेकिन मुकेश, कंठ और होंठ के साथ दिल से गाते थे। उस अमर गायक मुकेश को उनकी ३९वीं पुण्य-तिथि पर शत-शत नमन।

………   विपिन …… 9005385772

(पुण्य-तिथि २५-२६ अगस्त पर विशेष)

अमर गायक मुकेश उन सौभाग्यशाली कुछ गायकों में एक हैं, जिन्हें फिल्म-जगत में सफलता प्राप्त करने के लिए कोई संघर्ष नहीं करना पड़ा। शहद मिश्रित स्वर के बेताज बादशाह मुकेश को जब संगीतकार अनिल विश्वास ने पहली बार सुना, तो आश्चर्य से उनकी आँखें फटी की फटी रह गईं। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई नवागन्तुक, कुंदन लाल सहगल के गाने इतनी सहजता से और स्वर में उसी माधुर्य के साथ गा सकता है! वह ज़माना के.एल.सहगल का था जिनके सामने पंकज मल्लिक और सी.एच.आत्मा जैसे नैसर्गिक प्रतिभा के धनी गायक भी पानी भरते थे। अनिल विश्वास ने मुकेश पर अप्रतिम विश्वास जताते हुए अपने संगीत निर्देशन में बन रही फिल्म ‘पहली नज़र’ में गाने का अवसर दिया। मुकेश ने अपनी सारी प्रतिभा उड़ेल दी उस गाने में। कौन भूल सकता है स्वर-सम्राट मुकेश का वह पहला गीत – “दिल जलता है तो जलने दे, आँसू ने बहा फ़रियाद न कर……!” गाना सुपरहिट हुआ। एक बार सहगल जी ने इस गाने को सुना, तो वे भी आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह सके। अपने सेक्रेटरी से उन्होंने पूछा – “यह गाना मैंने कब गाया?” सेक्रेटरी का उत्तर था -“यह गाना आपने नहीं, नवागन्तुक गायक मुकेश ने गाया है।” सहगल ने मुकेश से मिलने की इच्छा जताई। जैसे ही मुकेश को यह समाचार मिला, वे अपने आदर्श कुंदन लाल सहगल से मिलने उनके आवास पर पहुँच गए। सहगल ने उन्हें बार-बार सुना और स्नेह से मुकेश के कंधे पर हाथ रखकर कहा – “अब मैं चैन से मर पाऊँगा। मुझे मेरा उत्तराधिकारी मिल गया। मेरी विरासत सुरक्षित रहेगी।” उन्होंने अपना वह हारमोनियम, जिसपर स्वयं अभ्यास करते थे, मुकेश को सौंप दिया। मुकेश जीवन भर उसी हारमोनियम पर अभ्यास करते रहे। लता मंगेशकर भी सहगल जी की अनन्य प्रशंसिका हैं। वे मुकेश को भी उतना ही पसंद करती हैं। उनका कहना है कि मुकेश जी की आवाज में मुझे के.एल.सहगल की प्रतिछाया दिखाई पड़ती है। जब मुकेश अपने कैरियर के उठान पर थे, सहगल जी का देहावसान हो गया। मुकेश ने सहगल की कमी खलने नहीं दी। वे सभी संगीतकारों के पसंदीदा गायक थे। फिल्म जगत के वे ऐसे एकमात्र गायक/गायिका थे, जिनके गाए लगभग सभी गाने जनता कि जुबान अविलंब पर चढ़ जाते थे।

समय किसी को भी नहीं बक्शता है। मुकेश को भी ५० के दशक में काफी दिक्कतें आईं। १९४७ में देश के बंटवारे के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के बीच पनपी असुरक्षा की भावना ने फिल्म जगत में भी अपना असर दिखाना शुरु कर दिया। नौशाद, शकील बदायूंनी, दिलीप कुमार (युसुफ़ खान), महबूब इत्यादि नामी-गिरामी हस्तियों ने अपना एक कैंप स्थापित कर दिया जिसे दिलीप कैंप कहा जाने लगा। उस समय फिल्म-जगत में इन लोगों का बोलबाला था। दिलीप कुमार ट्रेजेडी किंग थे और मुकेश थे दर्द भरे गीतों के शहंशाह। मुकेश ने दिलीप कुमार के लिए जितने भी गाने गाए, वे सुपर हिट ही नहीं हुए बल्कि मील के पत्थर साबित हुए। दिलीप कुमार पर मुकेश की आवज़ बहुत फबती थी। फिल्म अन्दाज़ के गाने – तू कहे अगर जीवन भर तुझे गीत सुनाता जाऊँ……., झूम-झूम के नाचो…, मेला का – गाए जा गीत मिलन के….,धरती को आकाश पुकारे….., मेरा दिल तोड़ने वाले…..,यहूदी का – ये मेरा दीवानापन है….., मधुमती का – सुहाना सफ़र और ये मौसम हंसी…….., दिल तड़प-तड़प के दे रहा है ये सदा…. इत्यादि को कौन भूल सकता सकता है जो मुकेश की आवाज़ में दिलीप पर फिल्माए गए थे। दिलीप कैंप के उदय के बाद दिलीप कुमार ने मो. रफ़ी का पार्श्वगायन लेना आरंभ कर दिया, लेकिन दिलीप के लिए रफ़ी द्वारा गाए गीत मुकेश द्वारा गाए गीतों की ऊँचाई नहीं प्राप्त कर सके। कारण स्पष्ट था – दिलीप की ट्रेजेडी एक्टिंग में मुकेश का दर्द भरा सहज स्वर एक अद्भुत प्रभाव का सृजन करता था। कैंपबाजी का सर्वाधिक नुकसान हिन्दी फिल्मी संगीत को हुआ। गायिकाओं में भी इस कैंप ने लता के विकल्प के रूप में शमशाद बेगम को प्रोत्साहित किया; लेकिन लता का विकल्प कोई बन सकता है क्या? लता और मुकेश का विकल्प न कभी था और न आगे होगा भी। मुकेश गुमनामी के अंधेरे में गुम होने के कगार पर आ गए थे। भला हो महान कला पारखी राज कपूर का जिसने मुकेश की प्रतिभा को सही ढंग से पहचाना और ‘आग’ से जो सफ़र इन दोनों ने साथ-साथ शुरु किया वह ‘मेरा नाम जोकर’ तक निर्बाध गति से चलता रहा। मुकेश राज कपूर की आवाज़ बन गए। फिल्म आवारा में राज पर फिल्माया गया, शंकर-जयकिशन के संगीत निर्देश्न में मुकेश की आवाज़ में कालजयी गीत ‘आवारा हूँ, आसमान का तारा हूँ, की लोकप्रियता ने देश में ही नहीं विदेश में भी लोकप्रियता के सारे रिकार्ड ध्वस्त कर दिए। तात्कालीन प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू जब राजकीय यात्रा पर रूस गए, तो सारे प्रोटोकाल तोड़कर वहाँ की जनता ने “आवारा हूँ, आसमान का तारा हूँ…… समवेत स्वर में गाकर नेहरू जी का स्वागत किया था।

वैसे तो मुकेश ने सभी संगीतकारों के निर्देश्न में पार्श्वगायन किया था, लेकिन उनकी मधुर आवाज़ का सबसे सुन्दर उपयोग करने में शंकर-जयकिशन, कल्याणजी-आनन्दजी, लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल, खैयाम, रोशन, उषा खन्ना, सरदार मलिक और दान सिंह का नाम सबसे ऊपर है। मुकेश हमेशा चुनिन्दा गाने ही गाते थे, इसलिए समकालीन गायकों की तुलना में उनके द्वारा गाए गीतों की संख्या बहुत कम है, लेकिन गुणवत्ता और लोकप्रियता बेमिसाल है। कहते हैं कि किशोर कुमार होंठों से गाते थे, मो. रफ़ी कंठ और होंठ – दोनों से गाते थे; लेकिन मुकेश, कंठ और होंठ के साथ दिल से गाते थे। उस अमर गायक मुकेश को उनकी ३९वीं पुण्य-तिथि पर शत-शत नमन।

………   विपिन …… 9005385772

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

2 thoughts on “अतुलनीय मुकेश – न भूतो न भविष्यति

  • सतीश बंसल

    शुक्रिया याद दिलाने के लिये, मेरे सबसे पसंद के गायक मुकेश जी को श्रृद्धासुमन…

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    मुकेश जी और रफ़ी जी की जगह हमेशा खाली ही रहेगी
    बेहतरीन गायकों को शत शत नमन

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