इस प्यार की धरा का
इस प्यार की धरा का, सावन सरस बनों तुम।
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम।।
पलकें बिछाऊं अपनी, तेरी डगर में हमदम।
हरियाली कर दो तन मन, मुझे प्रेयसी वरो तुम….
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम….
प्यासा है मन का आंगन, प्यासा है प्रेम उपवन।
बन कर बरसता बादल, मुझे नव उमंग दो तुम….
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम…
पतझर सी जी रही हूं, उजडी बहारें लेकर
दे दो बहार मौसम , मुझे प्रेम रुत करो तुम..
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम…
आनंद छंद करदो, इस दिल की धडकनों को।
जीवन में उमंगो की, नव चेतना भरो तुम…
हर बूंद से निकलता, बस प्रेम रस बनों तुम…
सतीश बंसल