गजल
मुझपे ये आखरी एहसान कर दे,
बस मेरा हौसला चट्टान कर दे
आज़माइश से ना हो खौफ मुझको,
मुसल्लम तू मेरा ईमान कर दे
मेरी पहचान खुद से ही करा दे,
भले दुनिया से फिर अनजान कर दे
उसी में देख लूँगा अक्स तेरा,
किसी को मेरे घर मेहमान कर दे
नामुमकिन नहीं तेरे लिए कुछ,
फकीरों को भी तू सुल्तान कर दे
ना दौलत चाहिए ना मुझको जन्नत,
कर सके तो मुझे इंसान कर दे
— भरत मल्होत्रा।
behtar samapti
सुंदर रचना