ईद आ गई
गले मिलकर मिटा लो फासले ईद आ गई।
मोहब्बत के शुरू हों सिलसिले ईद आ गई।
नए ख्याल नई ख्वाहिश हसीं ख्वाब आँखों में
खुशियों के सुहाने सफर पे चलें ईद आ गई
बढ़ जाये भाईचारा,बढ़े सुख-शांति,बरक्कत
दुआ है कोई भी न रहे अकेले ईद आ गई।
तल्खी से तबस्सुम को भी रोते हुए देखा
नफरत की आग में क्यूँ जलें ईद आ गई।
ईद की शाम भी दीवाली की तरह हो रौशन
जुदा रंगो के,चलें संग काफिले ईद आ गई।
मखमसा न हो दरमियाँ मिट जाएँ दूरियाँ
न सियासत का कोई खेल खेले ईद आ गई।
अनजान हैं क्या होगा मकसूम का मकसद
जी लें हँसकर जो भी लम्हे मिले ईद आ गई।
कवि वैभव”विशेष”