गीतिका/ग़ज़ल

ईद आ गई

गले मिलकर मिटा लो फासले ईद आ गई।
मोहब्बत के शुरू हों सिलसिले ईद आ गई।

नए ख्याल नई ख्वाहिश हसीं ख्वाब आँखों में
खुशियों के सुहाने सफर पे चलें ईद आ गई

बढ़ जाये भाईचारा,बढ़े सुख-शांति,बरक्कत
दुआ है कोई भी न रहे अकेले ईद आ गई।

तल्खी से तबस्सुम को भी रोते हुए देखा
नफरत की आग में क्यूँ जलें ईद आ गई।

ईद की शाम भी दीवाली की तरह हो रौशन
जुदा रंगो के,चलें संग काफिले ईद आ गई।

मखमसा न हो दरमियाँ मिट जाएँ दूरियाँ
न सियासत का कोई खेल खेले ईद आ गई।

अनजान हैं क्या होगा मकसूम का मकसद
जी लें हँसकर जो भी लम्हे मिले ईद आ गई।

कवि वैभव”विशेष”

वैभव दुबे "विशेष"

मैं वैभव दुबे 'विशेष' कवितायेँ व कहानी लिखता हूँ मैं बी.एच.ई.एल. झाँसी में कार्यरत हूँ मैं झाँसी, बबीना में अनेक संगोष्ठी व सम्मेलन में अपना काव्य पाठ करता रहता हूँ।