ग़ज़ल (जब चर्चा में रहे कोई)
ग़ज़ल (जब चर्चा में रहे कोई)
वक़्त की साजिश नहीं तो और क्या बोले इसे
पलकों में सजे सपने ,जब गिरकर चूर हो जाएं
अक्सर रोशनी में खोटे सिक्के भी चला करते
ना जाने कब खुदा को क्या मंजूर हो जाएं
भरोसा है हमें यारो की कल तस्वीर बदलेगी
गलतफहमी जो अपनी है वह सबकी दूर हो जाएं
लहू से फिर रंगा दामन न हमको देखना होगा
जो करते रहनुमाई है, वह सब मजदूर हो जाएं
शिकायत फिर मुक्कदर से ,किसी को भी नहीं होगी
जब हर पल मुस्कराने को हम मजबूर हो जाएं
शोहरत की ख़ुशी मिलती और तन्हाई का गम मिलता
जब चर्चा में रहे कोई और मशहूर हो जाए
मदन मोहन सक्सेना
सुंदर सोच
अच्छी गज़ल