कहानी

थोड़ी सी समझदारी

कभी -कभी रिश्तों में अलगाव की वजह,  इतनी छोटी सी बात से हो जाती है कि समय के साथ -साथ हमें रिश्तों में बेवजह आई दूरियां खुद ही अटपटी सी लगने लगती हैं ।मगर स्वाभिमान वश हम  खुद को गलत साबित होने नहीं देते और हमारा अहम !हमें कभी -कभी ज़िंदगी के हसीन पलों से दूर कर कहीं बेरंग ,बेरुखी सी ज़िंदगी जीने पर मजबूर कर देता है ।

कुछ  ऐसे ही दौर से गुज़र रही थी सुप्रिया !यूं तो कहने को सुप्रिया के ससुराल वाले अच्छे ही थे ,मगर हर किसी को मुकम्मिल जहाँ नहीं मिलता !कहीं कुछ कमी तो होती है और सब कुछ पाने की चाह में जो हमारे पास है हम  उसका भी सौन्दर्य खो देते हैं ।जब तक हमें अपनी गल्तियों का ऐहसास होता है तब तक देर हो जाती है ।फिर भी दूसरों की भावनाओं को भी उनकी जगह खुद को रख कर देखा जाए तो थोड़ा बहुत  एहसास तो हो ही जाता है ।सुप्रिया तो जैसे ससुराल में सबको अपनी ही तरह से बदलने को आतुर थी । वो यह नहीं समझ पा रही थी कि सभी का स्वभाव अलग -अलग होता है और हम चाहकर भी ,सभी को अपनी तरह से बदल नहीं सकते ना ही जीने पर मजबूर कर सकते हैं ।सुप्रिया की सास सुप्रिया को पसंद तो करती थी मगर  उसे कहीं आना जाना या ज्यादा खर्चा कर देना किसी चीज़ पर पसंद नहीं था कभी तो इसी बात पर ही सुप्रिया की अपने पति के साथ भी अनबन हो जाती थी ।जैसे ही सुप्रिया और  उसके पति कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बनाते तो उसकी सास नाराज़ हो जाती थी और गुस्से में कुछ  बातें भी सुना देती थी ।उनको घर पर रहना पसंद था और  उनका मानना था कि महंगाई है फिज़ूलखर्च मत करो ।सुप्रिया को इसी बात पर  गुस्सा आ जाता था ,कुछ शब्द तो बर्दाशत के बाहर हो जाते थे उसकी !यूं तानो बानों में वो अकसर उल्झ कर रह जाती ,वहीं उसके पति भी थोड़े गुस्से वाले थे ।सुप्रिया समझदार तो थी पर कभी -कभी जल्दबाजी में गल्त सोच कर फैसले पर भी पहुंच जाती थी और सोचती कि मेरी किस्मत कैसी है क्या मै अपनी मनमानी भी नहीं कर सकती ।सुप्रिया की सास भी कुछ बातों में अच्छी भी थी यह भी नहीं कि उसे बिल्कुल ही कहीं आने जाने नहीं देती थी मगर थोड़ी सख्ती तो थी ।गुस्से में क्या कह दिया और सुनने वाले को कितना बुरा लगा यह ध्यान नहीं रहता था ।एक दिन तो ऐसे ही कहीं जाने की बात को लेकर बात बड़ गई सुप्रिया ने भी गुस्से में अपने कपड़े पैक किए और बिना अपने पति को बताए अपने मायके के लिए निकल पड़ी ।सास भी घबरा कर कहने लगी सुप्रिया ऐसा मत करो मैने गुस्से में जाने क्या कह दिया ,मेरी बात को ऐसे मत लो पता नहीं मुझे क्या हो जाता है जब गुस्सा आ जाता है ।इस तरह  अपना घर छोड़ कर कोई जाता है बेटा मैं तुम्हारे भले के लिए ही कहती हूँ  ,पर सुप्रिया को कोई बात  इतनी चुभ गई कि अब  उसका दिमाग ही काम नहीं कर रहा था कि सही क्या है और वो छोड़ कर अपने मायके आ गई  । जब उसके पति को पता चला तो वो भी जिद्द पर  अड़ गए कि उसने इतना बड़ा कदम कैसे उठाया इसमे उसके घर की बेज्जती थी  । वो मुझसे बात तो कर सकती थी ।सुप्रिया जब घर पहुंची तो उसके ममी पापा  समझ गए कि कुछ बड़ी बात हो गई है । सुप्रिया ने जैसे सारी बात समझाई ,तो उसके ममी पापा ने सुप्रिया को डांटा कि जल्दबाज़ी में इस तरह फैसले नहीं लेते शान्ति और समझदारी से काम लेते हैं ।थोड़ा सा खुद को माहौल के मुताबिक भी ढालते हैं शादी के बाद कुछ फर्क तो पड़ता है ज़िंदगी में । कुछ तुम्हें समझना होगा कुछ  उन्हें !सास और ससुर जी के लाख कहने पर भी सुप्रिया के पति ने भी ज़िद्द पकड़ी थी खुद गई है तो खुद ही आएगी ।कुछ दिन मायके में रहने के बाद सुप्रिया को अपना ही फैसला खलने लगा और वो पछताने लगी कि यहाँ मुझे इतना कुछ मिला है अच्छा घर समझदार ससुर जी और पति । सास भी दिल की बुरी नहीं थी , उसे बात को इतना नहीं बढ़ाना चाहिए था ।आहिस्ता -आहिस्ता प्यार से वो अपनी मर्ज़ी भी कर सकती थी पर  उसके लिए उनके दिल में जगह बनानी होगी और छोटी-छोटी बातों को अनदेखा भी करना पड़ता है ।जैसे वो मायके रहती थी कहीं किसी बात पर अपने ममी पापा भी तो विरोध करते थे और डाँटते थे ।हर बात हमारी ही मर्ज़ी के मुताबिक मिले या हो ऐसा कम ही हो पाता है ।फिर  एक दिन उसकी सहेली घर  आई उसकी भी शादी हो चुकी थी उसकी भी लगभग यही कहानी थी ।वो इन सब बातों को समझती थी उसने भी सुप्रिया को घर वापिस लौटने की सलाह दी ।घर तो सुप्रया भी लौटना चाहती थी पर हिचकिचाहट हो रही थी अब  इतने दिन हो गए हुए थे ।पति ने भी कोई बात नहीं की थी, अंजान डर भी था कि जाने सब कैसे पेश  आएंगे कैसे वापिस लौटूं !इसी कशमकश में क ईं दिन बीत गए  ।समय के साथ  इन्सान में थोड़ा सा बदलाव  आ जाता है ,सुप्रिया की सास  अपनी बातों से शर्मिंदा थी उन्हें भी लगा शायद मैने भी ज्यादा सख्ती कर दी ।पर पहल कौन करे यही समस्या थी  ,पति भी गुस्से से जिद्द पर थे ।सुप्रिया भी घर वापिस जाना चाहती थी पर खुलकर कह नहीं पा रही थी  ।पर सुप्रिया के ममी पापा ने थोड़ी सी समझदारी दिखाते हुए ससुराल में जाकर बात करना उचित समझा ।वहाँ सास  और ससुर जी भी सुप्रिया के बिना उदास हो गए थे पर बेटे की जिद्द के आगे बेबस थे ।उदास तो पति भी थे पर झूठे अहम को छोड़ नहीं पा रहे थे।जैसे ही सुप्रिया अपने ममी पापा के साथ  घर पहुंची तो सास ससुर जी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा सास ने तो सुप्रिया को गले से लगाकर बच्चो की तरह रोना शुरु कर दिया कि तुम्हें पता नहीं चला हम कितने उदास हो गए थे अपने घर  आने में इतनी देर लगा दी ।सुप्रिया  भी उदास थी और माफी मांगने लगी कि मेरी वजह से आप का दिल दुखा ।पर सास को तो सारी बातें , गल्तियां बेमाने लग रही थी वो तो उसके आने की खुशी में खो सी गई थी।पति भी सुप्रिया को देखकर मंद -मंद मुस्का रहे थे और झूठी जिद्द  उस पर हावी नहीं हो पा रही थी ।सब अपने आप में इतने खुश हो गए थे कि सुप्रिया के ममी पापा को कुछ बोलने की जरूरत नहीं पड़ी ।छोटे -छोटे गिले शिकवों के बाद सुप्रिया अपने ससुराल में अपनी जगह वापिस पा चुकी थी और   घरवालों की छोटी सी समझदारी की वजह से दो घर बर्बाद होने से बच गए थे !!!

कामनी गुप्ता ***

कामनी गुप्ता

माता जी का नाम - स्व.रानी गुप्ता पिता जी का नाम - श्री सुभाष चन्द्र गुप्ता जन्म स्थान - जम्मू पढ़ाई - M.sc. in mathematics अभी तक भाषा सहोदरी सोपान -2 का साँझा संग्रह से लेखन की शुरूआत की है |अभी और अच्छा कर पाऊँ इसके लिए प्रयासरत रहूंगी |

2 thoughts on “थोड़ी सी समझदारी

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    प्रेरक कहानी
    सभी घरों में अपनानी चाहिए

    • कामनी गुप्ता

      Dhanyabad ji

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