कविता

धीरज रख…..

चीर कर इन घनघोर अंधेरों का सीना किरणें एक दिन आयेंगी जरुर,धीरज रख
मुरझाई हुई कलियां एक दिन खिलेंगी मुस्काएंगी जरूर, धीरज रख।
मायूस ना हो इन वीरानियों के साये में एक दिन हंसेगी जिन्दगी
ये खामोंशियां एक दिन गुनगुनाएंगी जरूर, धीरज रख॥

ये जो उग आये है शैतानियत के पहाड, एक दिन चूर जरूर होंगे।
ये जो मदांध हो कर समझ बैठें है, खुद को खुदा नाबूद इनके गुरुर जरूर होगें॥
इंसानियत अपना असर दिखाएगी जरूर, घीरज रख…..
ये खामोंशियां एक दिन गुनगुनाएंगी जरूर, धीरज रख…..

दुवाओं का असर जरूर फलेगा, भले कुछ देर से सही।
सत्य फिर सर उठा कर जरूर चलेगा, भले देर से सही॥
अमर कोई नही हैं इस मृत्यु लोक में, अधर्म के दानव कि भी मौत अयेगी जरूर, धीरज रख…..
ये खामोंशियां एक दिन गुनगुनाएंगी जरूर, धीरज रख…..

ऐ गरीब! जानता हूं तू बैचेन है, कौन करेगा तेरी परवाह।
तू उदास है येे सोचकर, कौन दिखायेगा इन अंधेरों मे राह॥
परेशान मत हो, वो जगत पालक है, कुदरत अपना कोई नया रूप दिखायेगी जरूर,धीरज रख…
ये खामोंशियां एक दिन गुनगुनाएंगी जरूर, धीरज रख……

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.