गीतिका/ग़ज़ल

“आँखे” (गजल)

नील मोती सिप प्यारी आँख से झरना बहा
कब रुके नैनों की सरिता भावना बहती जहां ||

हंसती हुयी ऑंखें विकल होती हैं अश्रुधारसे
नज़रों का गिरना देखने रुकता नहीं कोई यहां ||

जब उठी ऑंखें मुहब्बत प्यार के दहलीज पर
घायल परिंदा हों गया न आस्मा जिसका रहा ||

प्रेम का परिहास निज आँख को भाता नहीं
आँखें समझती है दीवानी प्रेम का दरिया कहां ||

शीतल हवा झरना झरे सुंदर समां आकाश में
चाँद की प्रतिचांदनी बिखरी हुयी सारे जहां ||

झूठी नहीं होती हैं आँखे सत्य का दर्पन लिए
बेवजह काजल लगा गढते रहें हम कह कहा ||

महातम मिश्र

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ

2 thoughts on ““आँखे” (गजल)

  • ग़ज़ल अच्छी लगी

    • महातम मिश्र

      सादर धन्यवाद आदरणीय भमरा जी

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