उस दीपक की तरह जलूं…
उस दीपक की तरह जलूं, जिस लौ से जग आलोकित हो।
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो॥
सत्य वरु और धर्म चरु, चाहे पथ कंटक हो जितना।
निभा सकुं हर वचन मेरा, हे प्रभु हौसला दो इतना॥
रीति नीति का ध्यान रहे, मस्तक ना कभी कलंकित हो….
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो…..
उर में सार रहे तेरा, संयम पालन हर हाल रहे।
वाणी मधुर रहे हर पल, आदर सत्कार निहाल रहे॥
मर्यादा का खयाल रहे, संस्कार सदा संकल्पित हो…..
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो…..
अडिग रहूं जीवन मुल्यों पर, कठिनाई के दौर में भी।
लोभ मोह से दूर रहुं, हर हाल मे और हर ठौर मे भी॥
जब भी कदम धरुं पथ पर, तेरा स्वरुप ही कल्पित हो…
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो…..
सतीश बंसल
अच्छा गीत !