गीत/नवगीत

उस दीपक की तरह जलूं…

उस दीपक की तरह जलूं, जिस लौ से जग आलोकित हो।
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो॥

सत्य वरु और धर्म चरु, चाहे पथ कंटक हो जितना।
निभा सकुं हर वचन मेरा, हे प्रभु हौसला दो इतना॥
रीति नीति का ध्यान रहे, मस्तक ना कभी कलंकित हो….
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो…..

उर में सार रहे तेरा, संयम पालन हर हाल रहे।
वाणी मधुर रहे हर पल, आदर सत्कार निहाल रहे॥
मर्यादा का खयाल रहे, संस्कार सदा संकल्पित हो…..
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो…..

अडिग रहूं जीवन मुल्यों पर, कठिनाई के दौर में भी।
लोभ मोह से दूर रहुं, हर हाल मे और हर ठौर मे भी॥
जब भी कदम धरुं पथ पर, तेरा स्वरुप ही कल्पित हो…
उन रस्तों पर चलूं सदा, जिससे मानवता पुलकित हो…..

सतीश बंसल

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.

One thought on “उस दीपक की तरह जलूं…

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा गीत !

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