राजनीति

हिन्दुओ ! जरा, ईमानदारी से अपने गिरहबान में झांको

बड़ी अजीब बात है कि फेसबुक के साथी लोग, साहित्य और अन्य क्षेत्रों के कथित सम्मानितों, मीडिया और अन्यों को बार बार कोसते रहे हैं, मैं भी कुछ हद तक शामिल रहा हूं| परन्तु अपने ही समाज के भाइयों के साथ हुए अत्याचार के खिलाफ क्या हम हाथ से हाथ मिलाकर कभी खड़े हुए हैं? नहीं, कभी नहीं| और तो और संघ जैसे हिन्दू रक्षक संगठन को भी सामने आ कर या कभी चुपचाप सहयोग करने की कोशिश नहीं की है|

अपने गिरहबान में ईमानदारी से झाकेंगे तो सबसे बड़े गुनाहगार हम स्वयं नजर आएंगे| यदि याकूब जैसे आतंकवादी के जनाजे में लाखों लोग हो सकते हैं तो भी हमारी नींद नहीं खुलती है| अपने दायित्व का प्रामाणिकता और निष्ठा से निर्वहन कर रहे पुलिस अधिकारी, सैन्य अधिकारी या सैनिक या गौभक्त या विश्व हिन्दू परिषद् , या संघ के स्वयंसेवक जो कि समाज के रक्षक के रूप में सेवा करते हुए मार दिए जाते हैं तो हम यह मान लेते हैं कि यह उनका निजी मामला था| क्या साधू संत या बड़े हिन्दू नेता उनके घर जाकर सात्वना नहीं दे सकते हैं? क्या हर ऐसी हत्या या शहादत के बाद, सरकारें न भी दें क्या, हम 15-20 हजार लोग ही सही, सौ सौ रुपए की राशि एकत्रित कर पीड़ित परिवार को एक किस्म की आश्वस्ती नहीं दे सकते या एक फण्ड ही हमेशा के लिए बना लिया जाए, जिसके लिए मन्दिरों, साधू संतों, उद्योगपतियों और दानदाताओं के साथ ही आम नागरिक से भी सहयोग लिया जाए|

मैं तो कहता हूं हिन्दुवादी लोग शिकायतें छोड़ें| क्योंकि सभी सेक्यूलर लोग जानते हैं कि देश के सारे हिन्दू भी मारे जाएंगे तो केवल उनके परिवारों को ही परेशानी होना है| हिन्दू समाज में किसी दूसरे हिन्दू को फर्क पड़ता होता तो देश के हिन्दुओं की इतनी दुर्गति कदापि नहीं होती| पैसा देकर धर्मान्तरण, पैसे देकर गरीबों को शिक्षा और उपचार और फिर उनको भावनात्मक रूप से अपना गुलाम सा बना लेना, क्या इनको हमने नजरअंदाज नहीं किया है? क्या संतों को सकल हिन्दू समाज के विकास और उत्थान के बारे में नहीं सोचना चाहिए? हम दान देकर भूल जाते हैं और दुखद सत्य है कि साधू संत लेकर भूल जाते हैं कि हिन्दुओं की रक्षा, उत्थान उनका महत्वपूर्ण और प्राथमिक नैतिक कर्तव्य है| क्या उनका कोई कर्तव्य नहीं है? वे पादरी और मौलवी को देखकर ही कुछ सोचते, नहीं सोचा, कभी नहीं सोचा| क्या जो सम्मान साधू संतों को समाज देता है, क्या उस सम्मान के प्रतिसाद का हकदार समाज नहीं है| दलितों का उत्थान हो| छुआछूत समाप्त करें| आरक्षित जाति के ग्रामीण और वनवासी बच्चों को बचपन से ही गोद लेकर पढ़ाने का दायित्व साधू संत लें या उनके मार्गदर्शन में समाज करें|
आज तो यह हालत है कि जो हिन्दू हित की बात करेगा, हिन्दू समाज उस पर ही जोरदार आघात करेगा|

वंदेमातरम्, वंदेगौमातरम्

— डॉ. मनोहर भण्डारी

3 thoughts on “हिन्दुओ ! जरा, ईमानदारी से अपने गिरहबान में झांको

  • Man Mohan Kumar Arya

    आपने जो लिखा वह कटु सत्य है। हिन्दुओं मुख्यतः हमारे धार्मिक एवं राजनैतिक नेताओं को हिन्दू हितो की कोई परवाह है, दिखाई नहीं देती। महर्षि दयानंद ने हिन्दुओं सहित समस्त मानवता के लिए जो कार्य किया व हमें करने का सन्देश दिया था, उसे हमने दर किनार कर दिया है। लेख के लिए लेखक महोदय को धन्यवाद।

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख डा साहब !

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लेख अच्छा लगा .

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