कविताहास्य व्यंग्य

हास्य-व्यंग्य : पुरस्कार वापसी

 

पिछले हफ्ते मैं पत्नी के साथ अचानक
ससुराल चला गया
ससुर जी कई बार बुलाने के बावजूद
पहले नहीं जा पाया था
सो उन्हें थोड़ा ताव आ गया
बोले-पहले तो आप कहे-कहे नहीं आते थे
आज बिना बुलाए कैसे तशरीफ लाये हैं
मैंने पत्नी की ओर इशारा करते हुये कहा-
बीस साल पहले आपने जो पुरस्कार दिया था
उसे वापस करने आये हैं
वे मेरी सास की ओर देखते हुये बोले
चालीस साल से तो हम ट्राई कर रहे हैं
अभी तक नहीं कर पाये हैं
इसलिए तुम्हें भी ये सुख उठाने का मौका
इतनी आसानी से नहीं देंगे
जब तक हमारा पुरस्कार वापस नहीं होता
हम तुम्हारा पुरस्कार वापस नही लेंगे
हाँ, एक शर्त पर तुम्हें राहत दे सकते हैं
पुरस्कार के साथ दी गई धनराशि
यानि मय सामान कुल दहेज की राशि भी
दस प्रतिशत वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज की दर से
वापस करो तो
तुम्हारा पुरस्कार वापस ले सकते हैं
मैंने बीस साल पहले के कुल दहेज पर ब्याज लगाया
दो लाख के पीछे कितने जीरो और लगेंगे
मेरी समझ में ही नहीं आया
मैंने कहा-ससुर जी,
अगर आप इतना तगड़ा ब्याज लगायेंगे
तो हम क्या हमारे पिताजी भी
पुरस्कार वापस नहीं कर पायेंगे
इसलिए क्षमा कीजिए
मेरा पुरस्कार मेरे पास ही रहने दीजिए
दोस्तों, यह तो सिर्फ मनोविनोद है
वरना सम्मान वापस करना
न केवल सम्मान का विरोध है
वरन सम्मान करने वाले का भी विरोध है
हम कलम के सिपाही हैं
हमें अपनी कलम चलानी चाहिए
विरोध में राजनीति नहीं करनी चाहिए
कलम की ताकत दिखानी चाहिए.

— डाॅ. कमलेश द्विवेदी
मो.09415474674

One thought on “हास्य-व्यंग्य : पुरस्कार वापसी

  • प्रीति दक्ष

    sateek

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